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________________ ग्यारहवाँ परिच्छेद नेमिनाथ भगवान का जन्म उधर शौर्यपुर नगर में समुद्रविजय राजा की शिवादेवी रानी ने एक दिन प्रभात के समय 'गज, वृषभ, 'सिंह, 'लक्ष्मी, पुष्प माला, 'चन्द्र, 'सूर्य, ध्वज, 'कुम्भ, "पद्मसरोवर, "श्रीसागर, देवविमान, रत्नपुञ्ज और “निर्धूम अग्नि-यह चौदह महास्वप्न देखे। उस दिन कार्तिक कृष्ण द्वादशी और चित्रा नक्षत्र था। उस नक्षत्र से चन्द्रमा का योग होने पर अपराजित अनुत्तर विमान से शंख का जीव ज्युत होकर शिवादेवी के उदर में आया। उस समय तीनों लोक प्रकाशित हो उठे और अन्तर्मुहूर्त तक नारकीय जीवों को भी सुख हुआ। तीर्थकरों के जन्म के समय इतना तो अवश्य ही होता है। . स्वप्न देखते ही शिवादेवी की निद्रा टूट गयी। उन्होंने तुरन्त शैय्या त्यांगकर अपने पति से इन स्वप्नों का हाल कह सुनाया। राजा ने उनका फल जानने के लिए एक क्रोष्टकि नामक स्वप्न पाठक को बुला भेजा। उसी समय अचानक एक मुनिराज भी वहां आ गये। राजा ने उन दोनों का सत्कार कर उनसे उस स्वप्न का फल पूछा, इस पर मुनिराज ने कहा-“हे राजन् ! यह स्वप्न बहुत ही उत्तम है। तुम्हारी रानी एक ऐसे पुत्र को जन्म देगी, जो तीनों लोक का स्वामी तीर्थंकर होगा।" यह स्वप्न फल सुनकर राजा और रानी बहुत ही प्रसन्न हुए। रानी उस दिन से रत्न की भांति यत्नपूर्वक उस गर्भ की रक्षा करने लगी। उस गर्भ के प्रभाव से रानी के अंग प्रत्यङ्ग का लावण्य और सौभाग्य बढ़ गया। गर्भकाल पूर्ण होने पर शिवादेवी ने श्रावण शुक्ल पञ्चमी को मध्य रात्रि के समय चित्रा
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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