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श्री नेमिनाथ-चरित * 219 नहीं। राम को वह नहीं पहचानता, अत: उसे वहां पर जाने का आदेश दिया जा सकता है। __इस प्रकार विचार कर वसुदेव ने कोशल नगरी से राम सहित रोहिणी को बुलाकर उन्हें शोर्यपुर भेज दिया। इसके बाद एक दिन राम को बुलाकर, उनको सब मामला समझा, उन्हें भी नन्द और यशोदा के हाथों में सौंप, पुत्र की ही भाँति रखने का अनुरोध किया। नन्द और यशोदा ने इसमें कोई आपत्ति न की। उन्होंने कृष्ण की भांति राम को भी पुत्र रूप में अपना लिया। __राम और कृष्ण दोनों भाई दस धनुष ऊंचे और देखने में अत्यन्त सुन्दर थे। वे अिधर खेलने के लिए निकल जाते, उधर की ही गोपिकाएं सारा कामकाज छोड़कर, उनको देखने में लीन हो जाती थी। कृष्ण जब कुछ बड़े हुए, तब नन्द ने उनको शिक्षा के उपकरण दिये और वे राम के निकट धनुर्वेद तथा अन्यान्य कलाओं की शिक्षा प्राप्त करने लगे। राम और कृष्ण कभी एक दूसरे के भाई, कभी मित्र और कभी गुरु शिष्य बनते। वे खाते पीते, उठते बैठते, सोते जागते, खेलते कूदते सदा एक दूसरे के साथ ही रहते। यदि एक क्षण के लिए भी कोई किसी से अलग हो जाता तो वह उनके लिए असह्य हो पड़ता था। ... कृष्ण बहुत ही बलवान थे। उनके शरीर में कितना बल है, इसकी कभी किसी को थाह न मिलती थी। बीच बीच में वे ऐसे कार्य कर दिखाते थे, जिससे लोगों को दांतो तले अंगुली दबानी पड़ती थी। बड़े-बड़े उत्पाती वृषभों
को, जिन्हें कोई काबू में न कर सकता था, उन्हें वे केवल पूंछ पकड़कर खड़े .. कर देते थे। ऐसे ऐसे कार्य उनके लिए बायें हाथ के खेल थे। अपने भाई के यह कार्य देखकर राम को बड़ा ही आनन्द और आश्चर्य होता था, परन्तु वे
अपने मुख से कुछ भी न कहकर, उदासीन की भांति सब कुछ देखा करते थे। - धीरे धीरे कृष्ण की अवस्था जब कुछ बड़ी हुई, तब उनका अलौकिक रूप देखकर गोपियों के हृदय में काम विकार उत्पन्न होने लगा। वे जब तब कृष्ण को अपने बीच में बैठाकर रास और वसन्त क्रीड़ा करने लगती। जिस प्रकार भ्रमरदल एक क्षण के लिए भी कमल से अलग नहीं होता, उसी प्रकार गोपियां भी कृष्ण से कभी अलग न होती। कृष्ण को देखते ही उनकी पलकों