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218 * कृष्ण वासुदेव और बलभद्र का जन्म
थोड़ी देर में कुछ ग्वाल बाल खेलते हुए वहां आ पहुँचे, उन्होंने उन वृक्षों को देखकर समझा कि कृष्ण ने ही उन वृक्षों को उखाड़ डाला है। वे तुरन्त यशोदा के पास दौड़ गये। उन्होंने यशोदा से कहा-' -" कृष्ण ने दो वृक्षों. में ऊखल फँसाकर उन्हें उखाड़ डाला है ।" यशोदा यह आश्चर्यजनक संवाद सुनकर उसी समय वहां आ पहुँची । नन्द भी कहीं से दौड़ आये । कृष्ण को सकुशल देखकर उनके आनन्द का वारापार न रहा। उन्होंने धुलि धूसरित कृष्ण को गले से लगाकर बार-बार उनके मस्तक पर चुम्बन किया । उस दिन कृष्ण के उदर में दाम (रस्सी) बांधा गया था, इसलिए उस दिन से सब ग्वाल बाल कृष्ण को दामोदर कहने लगे ।
श्रीकृष्ण गोप गोपियों को बहुत ही प्यार करते थे, इसलिए वे उन्हें रात दिन गोद में लिये घूमा करती थी । ज्यों ज्यों वे बड़े होते जाते थे, त्यों-त्यों उनके प्रति लोगों का स्नेह भी बढ़ता जाता था । कृष्ण का स्वभाव बहुत ही चञ्चल था, इसलिए जब वे कुछ बड़े हुए, तब गोपियों की मटकियों से दूध दही उठा लाने लगे, ऐसा करते समय वे कभी कभी उनकी मटकियाँ भी फोड़ डालते थे, तथापि गोपियाँ उनसे असन्तुष्ट न होती थी । वे चाहे बोलते, चाहे मारते, चाहे दही मक्खन खा जाते, चाहे कोई नुकसान कर डालते, किन्तु हर हालत में नन्द, यशोदा और समस्त गोपगोपियाँ उनसे प्रसन्न ही रहते थे। उनकी बाललीला में, उनके क्रीड़ा कौतुकों में कोई किसी प्रकार की बाधा न देते थे, बल्कि उनके प्रेम के कारण, सब लोग मन्त्र मुग्ध की भांति उनके पीछे लगे रहते थे।
धीरे धीरे कृष्ण के अतुल पराक्रम की, शकुनि और पूतना को मारने, शकट तोड़ने और अर्जुन वृक्षों को उखाड़ डालने की बातें चारों ओर फैल गयी। जब यह बातें वसुदेव ने सुनी, तब उन्हें बड़ी चिन्ता हो गयी। वे अपने मन में कहने लगे – “मैं अपने पुत्र को छिपाने के लिए नन्द के यहां छोड़ आया था, परन्तु अब वह अपने बल से प्रकट होता जा रहा है । यदि कंस को उस पर सन्देह हो जायगा, तो वह उसका अमंगल किये बिना न रहेगा। इसके लिए पहले ही से सावधान हो जाना उचित है । यदि कृष्ण की रक्षा के लिए मैं अपने किसी पुत्र को उसके पास भेज दूं तो बहुत ही अच्छा हो सकता है। परन्तु अक्क्रुरादि पुत्रों को तो क्रूर मति कंस जानता है, इसलिए उन्हें भेजना ठीक