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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 217 नन्द ने बड़े आश्चर्य के साथ यह समाचार सुना। उन्होंने श्रीकृष्ण का समूचा शरीर टटोल कर देखा कि उन्हें कहीं चोट तो नहीं आयी है। इसी समय वहां यशोदा आ पहुँची। श्रीकृष्ण को अकेला छोड़ने के लिए नन्द ने उनको सख्त उलाहना देते हुए कहा-"प्यारी तुमने आज कृष्ण को अकेला क्यों छोड़ दिया। तुम्हारे ऐसे काम का परिणाम किसी समय बहुत ही भयानक हो सकता है। देख, आज ही भगवान ने इसकी रक्षा न की होती तो न जाने क्या हो गया होता! चाहे जितना नुकसान हो रहा हो। घी के घड़े ही क्यों न लुढ़के जा रहे हों, परन्तु कृष्ण को अकेला छोड़कर तुम्हें कहीं न जाना चाहिए।" ___यशोदा भी उस गाड़ी और विद्याधरियों को देखकर सहम गयी। उन्होंने बड़े प्रेम से कृष्ण को अपनी गोद में उठाकर उनके शरीर की जांच की। जब उन्हें विश्वास हो गया, कि कृष्ण को कहीं चोट नहीं आयी, तब उनका हृदय शान्त हुआ। उन्होने बार-बार कृष्ण के कपोल पर चुम्बन कर उन्हें गले से लगा लिया। इस दिन से वे कृष्ण को बड़े यत्न से रखने लगी। अपनी समझ में वे उन्हें कभी भी अकेला न छोड़ती थी, परन्तु कृष्ण बहुत ही उत्साही और चञ्चल प्रकृति के बालक थे, इसलिए वे मौका मिलते ही यशोदा की नजर बचाकर इधर उधर निकल जाया करते थे। . . कृष्ण की इस आदत से यशोदा बहुत आजिज हो गयी। एक दिन उन्हें कार्यवश अपनी पड़ोसिन के यहां जाना था। वे जानती थी, कि कृष्ण घर में बैठने वाला जीव नहीं है, इसलिए उन्होंने उनकी कमर में एक रस्सी बांधकर उस रस्सी का दूसरा छोर एक बहुत बड़े ऊखल से बांध दिया। इतना करने पर उन्हें विश्वास हो गया कि कृष्ण अब उस स्थान को छोड़कर और कहीं नहीं जा सकते, इसलिए वे पड़ोसिन के यहां चली गयी। श्रीकृष्ण को अकेले देखकर उसी समय सूर्पक का पौत्र अपने दादा का बदला चुकाने के लिये वहां आ पहुंचा। उसने श्रीकृष्ण के दोनों ओर अर्जुन के वृक्ष उत्पन्न किये। इसके बाद कृष्ण को ऊखल समेत पीस डालने के लिए वह विद्याधर उन्हें उन दोनों वृक्षों के बीच में ले गया। परन्तु उसके कुछ करने के पहले ही, कृष्ण की रक्षा के लिये वहां जो देवता नियुक्त थे, उन्होंने उन दोनों वृक्षों को उखाड़ डाला और उस विद्याधर को मारकर वहां से खदेड़ दिया। उस समय वहां कोई उपस्थित न था, किसी को भी यह भेद मालूम न हो सका।
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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