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216 * कृष्ण वासुदेव और बलभद्र का जन्म छोड़कर अपने वासस्थान को लौट आयी। परन्तु उस दिन से पुत्र वियोग सहन करना उनके लिये असम्भव हो पड़ा, इसलिये वे गो पुजन के बहाने रोज एकबार गोकुल जाने लगी। उसी समय से गो पूजन की प्रथा प्रचलित हुई, जो आज तक इस देश में सर्वत्र प्रचलित है।
परन्तु वसुदेव के शत्रुओं को इससे भला शान्ति कैसे मिल सकती थी? सूर्पक के शकुनि और पूतना नामक दो पुत्रियां थी। वे अपने पिता की प्रेरणा से उसका बदला लेने को तैयार हुई। एक दिन कृष्ण गाड़ी के पास अकेले खेल रहे थे। संयोगवश उस समय नन्द या यशोदा दो में से एक भी वहां उपस्थित न थे। इसी समय वह दोनों विद्याधरियाँ कृष्ण के पास आ पहुँचा और कृष्ण को मार डालने का मौका देखने लगी। कुछ देर में श्रीकृष्ण जब खेलते खेलते उस गाड़ी के नीचे पहुँचे, तब शकुनी उस गाड़ी पर चढ़ गयी और उन्हें उसके नीचे दबाकर मार डालने की चेष्टा करने लगी यह देखकर श्रीकृष्ण वहां से बाहर सरक आये। बाहर पूतना उनके लिए तैयार खड़ी थी। वह कृष्ण को गोदः . में लेकर उन्हें अपना जहर से भरा हुआ स्तन पिलाने लगी। परन्तु उसकी भी यह चाल बेकार हो गयी। कृष्ण की रक्षा करने के लिए जो देवता सदा उपस्थित रहते थे, उन्होंने इसी समय उस गाड़ी द्वारा प्रहार कर उन दोनों की जीवन लीला समाप्त कर दी। ___ इस घटना के कुछ देर बाद वहां नन्द आ पहुँचे। सबसे पहले उनकी दृष्टि उस गाड़ी पर जा पड़ी, जो शकुनि और पूतना पर प्रहार करने से चूर-चूर हो गयी थी। इसके बाद उन्होंने बड़े बड़े लोचनवाली राक्षसी समांन उन दोनों विद्याधरियों को देखा, जिसका प्राण पंखेरू तन पिंजर को वहीं छोड़कर न जाने कहाँ प्रयाण कर गये थे। यह देखते ही नन्द के प्राण सूख गये। किसी अज्ञात शंका से उनका हृदय कांप उठा वे अपने मन में कहने लगे-“मालूम होता है कि आज श्रीकृष्ण की खैर नहीं।" उन्होंने उसी समय उनकी खोज की। वे कहीं खेल रहे थे। उनको सकुशल देखकर नन्द के मृत शरीर में मानो फिर से प्राण आ गये। पूछताछ करने पर उन्हें ग्वाल बालों ने बतलाया कि “कृष्ण ने ही उस गाड़ी को तोड़ डाला था और उन्होंने उन राक्षसियों को मारकर अपनी प्राण रक्षा की थी!"