SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 215 कुछ देर बाद उस कन्या ने रोदन किया। उसे सुनकर समस्त प्रहरी उठ बैठे। वे उसी समय उस बालिका को कंस के पास उठा ले गये। कंस उसे देखकर विचार में पड़ गया। मुनिराज ने तो कहा था, कि देवकी के सातवें गर्भ से मेरी मृत्यु होगी, किन्तु यह तो एक बालिका है। यह मेरा नाश करने में कैसे समर्थ हो सकती है। मालूम होता है कि मुनिराज ने कोरी धमकी ही दी थी। इस बालिका की हत्या से मुझे क्या लाभ होगा? इस प्रकार विचार कर कंस ने उस बालिका की हत्या का विचार छोड़ दिया और केवल उसकी नासिका काटकर उसे देवकी को वापस दे दिया। वसुदेव के जो पुत्र उत्पन्न हुआ था और जिसे वे रातोरात नन्द के यहां छोड़ आये थे, उसका वर्ण श्याम होने के कारण उसका नाम कृष्ण पड़ा। यद्यपि प्रत्यक्ष रूप से नन्द और यशोदा ही उसका लालन पालन करते थे, किन्तु परोक्ष रूप से अनेक देवदेवियाँ भी उसकी रक्षा के लिए सदा उद्यत रहते थे। . कृष्ण के जन्म को एक मास होने पर देवकी ने उसे देखने के लिए गोकुल जाने की इच्छा प्रकट की। वसुदेव ने कहा—“प्रिये! तुम वहां सहर्ष • जा सकती हो, किन्तु यदि तुम बिना किसी कारण के अनायास वहां जाओगी, तो कंस को सन्देह हो जायगा। इसलिए हे सुभगे! वहां कोई निमित्त दिखलाकर • जाना उचित होगा। मेरी राय तो यह है कि तुम नगर की अनेक स्त्रियों को साथ लेकर गो पूजन करती हुई गोकुल पहुँच जाओ और गो पूजन के ही बहाने पुत्र को देखकर वहां से तुरंत लौट आओ!" .... वसुदेव की यह सलाह देवकी को पसन्द आ गयी, इसलिए उन्होंने वैसा ही किया। यशोदा की गोद में अपने लालन को–उस लालन को, कि जिसका हृदय श्रीवत्स से शोभित है, जिसकी कान्ति मरकत रत्न के समान है, जिसके हाथ पैर में चक्रादि के लक्षण है, विकसित कमल समान जिसके लोचन है, देखकर देवकी का हृदय आनन्द विभोर हो गया। उन्होंने उसे अपनी गोद में लेकर खेलाया, उसका दुलार किया और बार-बार उसे हृदय से लगाकर अपने प्रेमावेश को शान्त किया। कृष्ण को अपनी गोद से उतारने की उन्हें मानो इच्छा ही न होती थी, परन्तु लाचारी थी, इसलिए वे उसे वही
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy