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________________ 214 * कृष्ण वासुदेव और बलभद्र का जन्म तरह वह हमारे इस लाल को भी मार डालेगा। इस समय पहरेदार सो रहे हैं। आप चुपचाप इस बालक को लेकर निकल जाइये और नन्द को गोकुल में रख आइये। ऐसा करने पर इसका प्राण बच जायगा। हे नाथ! मुझ अभागिनी की इतनी प्रार्थना अवश्य मान्य कीजिए।" देवकी की यह प्रार्थना वसुदेव अमान्य न कर सके। वे उसी समय बालक को उठाकर चुपचाप महल से निकल पड़े। श्रावण की अँधेरी रात की, आकाश मेघाच्छन्न था, चारों और अन्धकार का साम्राज्य था, रास्ता भी साफ न था, किन्तु देवताओं की कृपा से सारी कठिनाइयाँ दूर हो गयी। उन्होंने उस बालक पर पुष्पवृष्टि की, शिर पर छत्र धारण किया और आठ दीपकों द्वारा मार्ग का अन्धकार दूर किया। किसी तरह वसुदेव महल से तो निकल आये, परन्तु उन्हें ख्याल आया कि नगर के दरवाजे तो रात को बन्द रहते हैं, वे किस प्रकार खुलेंगे? वे चिन्ता करते हुए किसी तरह मुख्य द्वार के पास पहुँचे। देखा तो वह द्वार खुला पड़ा' था। देवताओं ने धवल वृषभ का रूप धारण कर पहले ही वह द्वार खोल दिया था। उसी द्वार के पास काठ के एक पींजड़े में उग्रसेन बन्द रहते थे। वसुदेव जब उस स्थान में पहुंचे तो उग्रसेन ने उनसे पूछा—यह क्या है ? वसुदेव ने वह बालक दिखाकर कहा—“यह कंस का काल है। हे राजन्! इससे आपका भी उपकार होगा, किन्तु अभी यह बात किसी से जाहिर न कीजिएगा।"यह कहते हुए वसुदेव उस बालक को लिए शीघ्र ही नन्द के घर पहुँच गये। इसी समय नन्द पत्नी यशोदा ने भी एक पुत्री को जन्म दिया था। वसुदेव अपना पुत्र यशोदा को देकर, उनकी पुत्री आप ले आये। जिस समय वे उस पुत्री को लेकर अपने वासस्थान में पहुँचे, उस समय भी समस्त प्रहरी घोर निद्रा में पड़े हुए थे। इससे उन्हें उस कन्या के साथ देवकी के पास पहुँचने में कोई कठिनाई न हुई। उन्होंने उसे जाकर देवकी के हाथ में रख दिया और उसकी प्राप्ति का सारा हाल भी उसे कह सुनाया। देवकी यह जानकर परम प्रसन्न हो उठी कि उनका पुत्र सकुशल नन्द के घर पहुँच गया और कंस के हाथों से अब उसे हानि पहुँचने की कोई सम्भावना नहीं है।
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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