SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 213 उन्होंने परिवर्तन किया। फलत: देवकी के मृत बालक उत्पन्न हुए और उन्हें कंस ने शिला पर पटकवा दिया। दूसरी और सुलसा ने लगातार छ: पुत्रों का जन्मोत्सव मनाया। जो बड़े होने पर अनीकयशा, अनन्तसेन, अजीतसेन, निहतारि, देवयशा और शत्रुसेन के नाम से प्रसिद्ध हुए। - सातवीं बार ऋतुस्नाता देवकी ने प्रभातकाल में गज, सिंह, ध्वज, विमान, पद्मसरोवर और अग्नि इन सात चीजों को स्वप्न में देखा। यह स्वप्न बहुत ही शुभ था और वसुदेव के जन्म का सूचक था। यह स्वप्न देखने के बाद शीघ्र ही गंगदत्त का जीव महाशुक्र देवलोक से च्युत होकर देवकी के गर्भ में आया देवकी ने रत्न की भांति उस गर्भ की रक्षा की। गर्भकाल पूर्ण होने पर श्रावण कृष्णा अष्टमी को रात्रि के समय शुभमुहूर्त में देवकी ने एक पुत्र रत्न को जन्म दिया। । देवकी का यह सातवां गर्भ था। अतिमुक्त मुनि के कथनानुसार इसी के हाथ से कंस की मृत्यु होने वाली थी। इसी भय को दूर करने के लिए कंस ने वसुदेव से सात गर्भ मांग लिये थे। इस सातवें गर्भ को हाथ करने के लिए वह विशेष रूप से लालायित था, इसलिए उसने वसुदेव और देवकी के वासस्थान में कड़ा पहरा बैठा दिया था। परन्तु इस बालक की रक्षा का भार स्वयं देवताओं ने ले रक्खा था, इसलिए जिस समय उसका जन्म हुआ, उस समय समस्त पहरेदार इस प्रकार निद्रा में पड़ गये, मानों उन्होंने मद्यपान किया हो। . बेचारी देवकी के छ: बालकों को कंस ने शिला पर पटकवा दिया था। छ: बच्चों की माता होने पर भी उसकी गोद ज्यों की त्यों खाली थी। देवकी .. को इसके लिए बड़ा दुःख था। वह जानती थी कि उसके सातवें बच्चे की भी वही गति होगी, जो छ: बच्चों की हो चुकी है। उसकी कल्पना से ही उसका हृदय कांप उठा उसने खिड़की से बाहर झांक कर देखा तो सब पहरेदार घोर निद्रा में पड़े हुए थे। उसने किसी तरह अपने इस पुत्र को बचाने का संकल्प किया वसुदेव उसके पास ही शिर पकड़े हुए बैठे थे। देवकी ने गिड़गिड़ाकर उनसे कहा—“हे नाथ! किसी तरह मेरे इस बच्चे की प्राणरक्षा कीजिए। कंस आपका मित्र होने पर भी उसने आपको वचन बद्ध कर शत्रु का काम किया है। उसने जिस तरह मेरे छ: बच्चों को शिला पर पटकवाकर मार दिया है, उस
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy