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________________ 212 * कृष्ण वासुदेव और बलभद्र का जन्म वसुदेव और देवकी की इस कृपा के लिए उनको धन्यवाद अपने वासस्थान को चला गया। वह उस समय मदोन्मत्त मालूम होता था, इसलिए वसुदेव ने उस समय उससे अधिक बातचीत करना उचित न समझा परन्तु उसके चले जाने पर जब वसुदेव ने अतिमुक्त मुनि का हाल सुना, तब वे बड़ा ही पश्चात्ताप करने लगे । किन्तु अब पश्चात्ताप से कोई लाभ न था । वे सत्यवादी थे। समुद्र अपनी मर्यादा छोड़ सकता था, सूर्य पश्चिम में उदय हो सकता था, मेरु चलित हो सकता था, किन्तु उनका वचन मिथ्या नहीं हो सकता था। दूसरी ओर भद्दिलपुर नगर में नाग नामक एक धनीमानी सेठ रहता था । उसकी स्त्री का नाम सुलसा था । वे दोनों परम श्रावक थे । एकबार अतिमुक्त. मुनि ने बाल्यावस्था में सुलसा से कहा था कि तुम मृतवत्सा होगी। यह सुनकर सुलसा ने हरिणैगमेषी देव की आराधना की । आराधना करने पर ज़ब वह देव प्रसन्न हुआ तो सुलसा ने उससे पुत्रों की याचना की । इस पर देव ने अवधिज्ञान से विचार कर कहा कि - " हे सुलसे ! अतिमुक्त मुनि का वचन मिथ्या नहीं हो सकता। तुम्हारे उदर से जितने भी बच्चे उत्पन्न होंगे, वे सब मरे हुए ही होंगे। तथापि मैं तुम्हारी मनःतुष्टि के लिए एक उपाय कर सकता हूँ । वह यह कि, प्रसव के समय मैं तुम्हारे मृत पुत्रों को देवकी के पास में और देवकी के पुत्रों को तुम्हारे पास में रख दूंगा। इस परिवर्तन से देवकी को कोई हानि न होगी, क्योंकि उसके बच्चे तो अन्त में कंस द्वारा मारे ही जायेंगे, दूस ओर देवकी के बच्चे तुम्हें मिल जाने से उनका जीवन भी बच जाएगा और तुम्हारी मनोकामना भी पूर्ण हो जायगी । " इतना कह हरिणैगमेषी देव उस समय तो अन्तर्धान हो गये, किन्तु बाद में उन्होंने अपनी देवी शक्ति से सुलसा और देवकी को एक साथ ही रजस्वला बनाया, जिससे उन दोनों ने एक साथ ही गर्भ धारण किया और एक साथ ही उन दोनों का प्रसवकाल उपस्थित हुआ । हरिणैगमेषी ने जब देखा कि उनके में अधिक समय की देर नहीं है, तब उन्होंने सुलसा के मृत पुत्र को उठाकर देवकी के पास में और देवकी के पुत्र को उठाकर सुलसा के पास में स्थापित कर दिया। इसी प्रकार देवकी और सुलसा के लगातार छः पुत्रों का प्रसव
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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