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श्री नेमिनाथ-चरित * 13 . इस घटना को भी धीरे-धीरे कई वर्ष बीत गये। धन और धनवती की जीवन नौका उसी प्रकार अब भी संसार-सागर को पार कर रही थी। एक दिन वे दोनों स्नान और जल-क्रिड़ा करने के लिए एक सरोवर पर गये। संयोगवश एक मुनि भी उसी समय वहाँ आ पहुँचे। वे धूप और तुषा से अत्यन्त व्याकुल हो रहे थे, इसलिए वहीं एक अशोक-वृक्ष के नीचे बेहोश होकर गिर पड़े। धनवती ने उन्हें गिरते देखकर अपने पति का ध्यान उनकी ओर आकर्षित किया। धनकुमार तुरन्त उन्हें उठाने के लिए दौड़ पड़े। धनवती भी उनके पीछे वहाँ जा पहँची। पति पत्नी दोनों ने समुचित उपचार कर मुनिराज की मूर्छा दूर की। उन्हें होश आने पर धनकुमार ने वन्दना करके कहा-“महात्मन् ! आज हम लोगों का अहोभाग्य है जो मरुभूमि में कल्पवृक्ष की भाँति हमें आपके दर्शन हुए परन्तु आपकी अस्वस्थता देखकर हम लोग बहुत ही दुःखित हैं। यदि आप को आपत्ति न हो तो कृपया बतलाइए, कि आप की यह अवस्था क्यों हुई?"
मुनिराज ने कहा-“हे राजन् ! परमार्थ की दृष्टि से तो इस संसार का वास ही दुःख रूप है, परन्तु मुझे यह दु:ख विहार के कारण प्राप्त हुआ है, इसलिए उसका उद्देश्य अशुभ नहीं कहा जा सकता। मैं अपने गुरुदेव मुनिचन्द्र
सूरि तथा अन्यान्य कई साधुओं के साथ विहार करने निकला था, परन्तु मार्ग : में उन सबों का साथ छूट गया और मैं भटकता हुआ इधर निकल आया। यहाँ
रास्ते की कड़ी धूप, थकावट और तृषा के कारण मुझे मूर्छा आ गयी। इसके बाद जो कुछ हुआ सो आप जानते ही हैं। हे राजन् ! आपने मेरे साथ बहुत ही भलाई की है, इसलिए मैं आपको धर्मलाभ देता हूँ। क्षणमात्र में जो मेरी अवस्था हुई थी, वही इस संसार में सबकी होने वाली है। इसलिए आत्मकल्याण चाहने वाले पुरुष को धर्मसाधन करना चाहिए। ___ इसके बाद मुनिराज ने धनकुमार को सम्यक्त्व मूलक श्रावक धर्म कह सुनाया। उसे सुनकर धनकुमार ने अपनी पत्नी सहित सम्यक्त्वमूलक श्रावक धर्म ग्रहण किया। इसके बाद मुनिराज को अपने वासस्थान में लेकर आये
और भोजनादि द्वारा भलीभांति उनका आतिथ्य किया। उनका धर्मोपदेश सुनने के लिए और भी कई दिनों तक धनकुमार ने उन्हें अपने यहाँ रोक कर रखा। अन्त में धनकुमार से विदा ग्रहण कर मुनिराज अपने समुदाय में जा मिले।