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________________ 210 : कृष्ण वासुदेव और बलभद्र का जन्म देवक ने कहा- "मैं तो उपहास कर रहा था। अभी मैंने उसको कोई निश्चयात्मक उत्तर नहीं दिया है। यदि तुम्हें यह सम्बन्ध पसन्द है, तो मैं भी कदापि इन्कार न करूंगा । " इस प्रकार सबकी राय मिल जाने पर देवक ने मन्त्री को भेजकर कंस और वसुदेव को अपने महल में बुला लिया और शुभ मुहूर्त में बड़े समारोह के साथ वसुदेव से देवकी का विवाह कर दिया। दहेज में देवक ने बहुत सा सुवर्ण, अनेक रत्न और कोटि गायों सहित दस गोकुल के स्वामी नन्द को प्रदान किया। विवाह कार्य सम्पन्न हो जाने पर वसुदेव और कंस नन्द को अपने साथ लेकर मथुरा नगरी को लौट आये। वहां कंस ने अपने मित्र के इस विवाहोपलक्ष में एक महोत्सव का आयोजन किया, जिसके कारण नगर में कई दिन तक बड़ी चहल पहल और धूम मची रही। इसी बीच एक दिन कंस के छोटे भाई अतिमुक्त मुनि, जिन्होंने बहुत पहले दीक्षा ले ली थी, वे पारणा करने के लिए कंस के यहां पधारे। तपश्चर्या कारण उनका शरीर बहुत दुर्बल हो गया था, यहां तक कि वे बड़ी कठिनाई से चल फिर सकते थे। इधर कंस की पत्नी जीवयशा ने महोत्सव के कारण उस समय मद्यपान किया था । इसलिए वह उन्मत्त हो रही थी । उसने मुनिराज के गले में लिपट कर कहा - "हे देवर ! तुम इस महोत्सव के समय यहां पर आ गये सो बहुत ही अच्छा हुआ । आओ, हम दोनों एक साथ मिलकर नाचें और गायें। " उसने मुनिराज से इसी तरह की और भी दिल्लगियाँ की। इससे मुनिराज को बड़ा ही कष्ट हुआ। उन्होंने खिन्न होकर कहा - " हे पापिणी ! जिसके निमित्त यह उत्सव हो रहा है, उसी के सातवें गर्भ द्वारा तेरे पति और पिता की मृत्यु होगी । " मुनि का यह भयंकर वचन सुनकर जीवयशा का सारा नशा उतर गया और वह भय से थर थर कांपने लगी। उसने उसी समय मुनिराज को छोड़ दिया। उनके चले जाने पर जीवयशा ने कंस के पास जाकर सारा हाल कह सुनाया। उसे सुनकर कंस भी चिन्तित हो उठा। वह अपने मनमें कहने लगा—“इस बात की तो आशा ही न करनी चाहिए, कि मुनिराज का वचन
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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