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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 209 देवकी ने संकुचाते हुए पूछा-“भगवन् ! वसुदेव कौन हैं ?" नारद ने कहा-“कामदेव को भी लज्जित करने वाले, युवक शिरोमणि, विद्याधरियों के प्रिय पात्र, दसवें दशार्ह वसुदेव का नाम क्या तुमने नहीं सुना? उसका नाम तो बच्चे तक जानते हैं। हे सुन्दरी! दूसरा कोई ऐसा पुरुष नहीं है, जो रूप और सौभाग्य में उसके सामने ठहर सके। इसीलिए तो देवता भी उससे ईर्ष्या करते हैं।" इतना कह नारद मुनि अदृश्य हो गये। किन्तु उनकी बातों से देवकी के हृदय में वसुदेव ने सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर लिया। वह मन ही मन उन पर अनुरक्त हो गयी और उन्हीं के ध्यान में रात दिन निमग्न रहने लगी। कुछ ही दिनों में वसुदेव और कंस भी वहां जा पहुंचे। देवक राजा ने उनका बड़ा सत्कार किया और उच्च आसन पर बैठाकर उनके आगमन का कारण पूछा। इस पर कंस ने कहा-“ राजन् ! वसुदेव मेरे स्वामी और मित्र हैं, मेरी इच्छा है कि इनसे आप देवकी का ब्याह कर दें। इसके लिए इनसे बढ़कर दूसरा पति और कौन हो सकता है?" . देवक ने मुस्कुरा कर कहा--"आज तक मैंने कन्या के यहां इस तरह पति को जाते नहीं देखा। आपने यह विरुद्धाचरण क्यों किया? खेर, देवकी या उसकी माता से पूछे बिना इस सम्बन्ध में मैं कोई बात नहीं कह सकता।" . . देवक का यह उत्तर सुनकर कंस और वसुदेव अपने तम्बू में लौट आये। 'पश्चात् देवक राजा राजसभा से उठकर अपने अन्त:पुर में गया। वहां उसने रानी से कहा-"आज कंस ने देवकी का ब्याह वसुदेव से कर देने के लिए मुझे प्रार्थना की थी किन्तु मैंने इन्कार कर दिया है। देवकी मुझे प्राण से भी बढ़कर प्यारी है। यदि मैं इसका ब्याह अभी से कर दूंगा, तो मेरे लिए इसका वियोग असह्य हो जायगा।" यह सुनकर रानी और देवकी उदास हो गयी। देवकी के नेत्रों में तो आंसू तक भर आये। रानी ने कहा- “आप को इन्कार न करना चाहिए था। देवकी की अवस्था विवाह करने योग्य हो चुकी है। उसका वियोग तो किसी न किसी दिन हमें सहना ही होगा। जब आपको घर बैठे वसुदेव जैसा वर मिल रहा है। तो इस सुयोग से आप को अवश्य लाभ उठाना चाहिए।"
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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