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208 * कृष्ण वासुदेव और बलभद्र का जन्म छायावृक्ष के नाम से सम्बोधित किया जाता है। “यह वृत्तान्तं सुनकर कंस चकित हो गया।
तदनन्तर समुद्रविजय के यहां कुछ काल रहने के बाद कंस अपनी . राजधानी मथुरा नगरी को चला गया था। एक बार उसने वहां से वसुदेव को मथुरा आने के लिए निमन्त्रित किया। इसलिए वसुदेव समुद्रविजय की आज्ञा प्राप्त कर वहां गये। कंस और उसकी पत्नी जीवयशा ने उनका बड़ा ही आदर सत्कार किया। इसके बाद एकदिन मौका देखकर कंस ने कहा- "हे मित्र! मृत्तिकावती नामक नगरी में मेरे काका देवक राज करते हैं। उनके देवकी नामक एक कन्या है। आप उससे विवाह कर लीजिए। मैं आप का अनुचर हं.. इसलिए मुझे विश्वास है कि आप मेरी यह प्रार्थना अमान्य न करेंगे।"
वसुदेव ने कंस की प्रार्थना स्वीकार कर ली, इसलिए उनको अपने साथ लेकर कंस ने मृत्तिकावती नगरी के लिए प्रस्थान किया। संयोगवश मार्ग में नारद मुनि मिल गये। उन्होंने उनसे पूछा- “तुम दोनों जन कहां जा रहे हो?" ___ वसुदेव ने कहा- “कंस की इच्छानुसार मैं देवक राजा की देवकी नामक कन्या से विवाह करने जा रहा हूँ।"
नारद ने कहा—“कंस ने इस काम में मध्यस्थ बनकर बहुत ही उत्तम कार्य किया है। हे वसुदेव! जिस प्रकार पुरुषों में तुम सर्वश्रेष्ठ हो, उसी प्रकार स्त्रियों में देवकी शिरमौर है। मालूम होता है, कि विधाता ने यह अद्भुत जोड़ मिलाने के लिए ही तुम दोनों को उत्पन्न किया था। यदि तुम देवकी से विवाह कर लोगे, तो उसके सामने तुम्हें विद्याधरियां भी तुच्छ मालूम होने लगेगी। इस विवाह में कोई विघ्न बाधा न हो, इसलिए मैं अभी देवकी के पास जाता हूं और उसे तुम्हारे गुण सुनाकर, तुम्हीं से विवाह करने के लिए उसे समझा आता हूँ।"
इतना कह नारद उसी समय आकाश मार्ग द्वारा देवकी के घर जा पहुँचे। देवकी ने उनका आदर सत्कार कर यथाविधि उनका पूजन किया। इस पर नारद ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा-“हे कुमारी! मैं आशीर्वाद देता हूं, कि तुम्हारा विवाह वसुदेव के साथ हो!" .