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206 * कृष्ण वासुदेव और बलभद्र का जन्म उसने उस जन्म में नागिन का प्राण लिया था, इसलिये इस जन्म में उसकी माता उससे वैर रखती है। इस प्रकार हे सेठ! स्नेह और वैर पूर्वजन्म के कर्मों से उत्पन्न होते हैं, अकारण नहीं।
साधु के यह वचन सुनकर सेठ और ललित को बड़ा ही दुःख हुआ। उन्हें इस संसार की विचित्रता देखकर वैराग्य आ गया और उन दोनों ने उसी समय दीक्षा ले ली। मृत्यु के बाद वे दोनों महाशुक्र देवलोक में गये और वहां पर स्वर्गीय सुख उपभोग करने लगे, इधर गंगदत्त ने भी माता की अनिष्टता का. स्मरण कर विश्ववल्लभ होने का निदान किया। मृत्यु होने पर वह भी उसी महाशुक्र देवलोक का अधिकारी हुआ। ___ ललित का जीव देवलोक से च्युत होने पर वसुदेव की पत्नी रोहिणी के उदर से पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। जिस दिन वह रोहिणी के गर्भ में आया; उस दिन पिछली रात में रोहिणी ने एक स्वप्न देखा था, जिसमें उसे ऐसा मालूम हुआ था, मानो गज, सिंह, चन्द्र और समुद्र ये चारों उसके मुख में प्रवेश कर रहे हैं। यह स्वप्न बहुत अच्छा और पुत्र जन्म का सूचक था। इसलिए गर्भकाल पूर्ण होने पर रोहिणी ने सचमुच चन्द्र के समान एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। पश्चात् मागध आदि ने बड़ी धूमधाम से उसका जन्मोत्सव मनाया। वह बालक सबको प्यारा मालूम होता था, इसलिए वसुदेव ने उसका नाम राम रक्खा। यह राम आगे चलकर बलराम और बलभद्र के नाम से विख्यात हुआ। जब वह कुछ बड़ा हुआ तो वसुदेव ने उसकी शिक्षा दीक्षा के लिए एक आचार्य नियुक्त कर दिया। राम ने उसके निकट रहकर थोड़े ही दिनों में समस्त विद्याओं तथा कलाओं में पारदर्शिता प्राप्त कर ली।
एकदिन राजा समुद्रविजय अपनी राज सभा में बैठे हुए थे। उस समय वसुदेव और कंस आदि भी वहीं पर उपस्थित थे। इतने ही में वहां नारदमुनि
आ पहुँचे। उनको देखकर राजा तथा समस्त सभा खड़ी हो गयी। राजा ने उनको ऊंचे आसन पर बैठा कर पूजनादि द्वारा उनका बड़ा ही सत्कार किया। इससे नारदमुनि बहुत ही प्रसन्न हुए और राजा को आशीर्वाद दे वहां से अन्यत्र प्रस्थान कर दिये।
नारदमुनि का यह आदर सत्कार देखकर कंस को बड़ा ही आश्चर्य हुअ