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श्री नेमिनाथ-चरित * 205 माताजी उसे देख न सकेंगी।"
पुत्र की यह बात सुनकर पिता ने उसे इस कार्य के लिए अनुमति दे दी। भोजन का समय होने पर ललित ने गंगदत्त को एक पर्दे के पीछे बैठा दिया
और खुद पिता पुत्र उसके बाहर बैठकर भोजन करने लगे। भोजन करते समय बीच बीच में वे अपनी थाली से खाने की चीजें उठा उठाकर चुपचाप गंगदत्त को भी देते जाते थे। इतने ही में अचानक हवा से पर्दा उड़ा तो गंगदत्त पर उसकी माता की दृष्टि पड़ गयी। उसे देखते ही उसके बदन में मानो आग सी लग गयी। उसने गंगदत्त के केश पकड़कर उसे खूब मारने के बाद घर से बाहर निकालकर वह उसे एक मोरी में ढकेलं आयी।
महामति सेठ और ललित को इससे बड़ा ही दुःख हुआ। उन्होंने चुपचाप उसे मोरी से निकालकर नहलाया धुलाया और अनेक प्रकार से उसे सान्त्वना दी, इसके बाद वे फिर उसे उसी मकान में चुपचाप रख आये। - इस घटना के कुछ दिन बाद वहां पर कई साधुओं का आगमन हुआ। सेठ ने उनका आदर सत्कार कर, उनसे गंगदत्त और उसकी माता का हाल निवेदन करके पूछा- "हे भगवन् ! गंगदत्त की माता इससे इतना वैर क्यों रखती है?"
. इस प्रश्न से उत्तर में एक साधु ने कहा-“ललित और गंगदत्त पूर्वजन्म में सगे भाई थे। ललित बड़ा और गंगदत्त छोटा था एक बार वे दोनों गाड़ी . . लेकर जंगल में काष्ट लेने गये। .. वहां से गाड़ी में काष्ट भरकर जब वे लौटे, तो मार्ग में एक स्थान पर बड़े भाई को एक नागिन दिखलायी दी, उस समय छोटा भाई गाड़ी हांक रहा था। इसलिए बड़े भाई ने उसे पुकार कर उसका ध्यान उस नागिन की ओर आकर्षित किया और उसे बचा देने को कहा। यह सुनकर नागिन बहुत ही प्रसन्न हुई और उसे उन दोनों पर विश्वास जम गया परन्तु छोटा भाई कुटिल 'प्रकृति का था, इसलिए उसने उसके ऊपर से गाड़ी निकाल दी। इससे वह नागिन वहीं कुचल कर मर गयी। इस जन्म में वही नागिन तुम्हारी स्त्री हुई है वह बड़ा भाई, जिसने उस जन्म में उसकी रक्षा की थी, इस जन्म में ललित हुआ और वह अपनी माता के अत्यन्त प्यारा है। छोटा भाई गंगदत्त हुआ है।