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________________ 204 दसवाँ परिच्छेद कृष्ण वासुदेव और बलभद्र का जन्म २०.४ हस्तिनापुर नगर में एक महामति नामक सेठ रहता था । उसे ि नामक एक पुत्र था, जो माता को बहुत ही प्रिय था। एक बार सेठानी ने ऐसा गर्भ धारण किया, जो बहुत ही बुरा और सन्तापदायकं था । सेठानी ने उस गर्भ को गिराने के लिए अनेक उपाय किये, किन्तुं कोई फल न हुआ । यथासमय उसने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया, परन्तु जन्म होते ही उसने उसे कहीं फेंक देने के लिये एक दासी को सुपुर्द कर दिया । दासी को क्या, वह उसी समय उस बालक को लेकर वहां से चल पड़ी, परन्तु मकान से बाहर निकलते ही उसका पिता- सामने मिल गया । दासी के हाथ में जीवित बालक को देखकर उसने उसके सम्बन्ध में पूछताछ की, तो दासी ने उससे सारा हाल बतला दिया। बालक को देखकर सेठ का पितृ हृदय द्रवित हो उठा, इसलिए उसने दासी के हाथ से उसे ले लिया। इसके बाद गुप्तरूप से दूसरे मकान में ले जाकर उसने उसे बड़ा किया और उसका नाम गंगदत्त रक्खा। ललित को अपने इस भाई का हाल मालूम था, इसलिए वह भी कभी कभी उस मकान में जाकर उसे खेलाया करता था । एक दिन वसन्तोत्सव के समय उसने अपने पिता से कहा - " हे पिताजी ! वसन्तोत्सव के दिन गंगदत्त भी हम लोगों के साथ भोजन करे तो बड़ा ही अच्छा हो।" पिता ने कहा"हां, अच्छा तो है, किन्तु तुम्हारी माता उसे देख लेगी तो बड़ा ही अनर्थ कर डालेगी ।" ललित ने कहा- "अच्छा, मैं ऐसा प्रबन्ध करूंगा, जिससे
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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