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- श्री नेमिनाथ-चरित * 203 से बालचन्द्रा आपसे विवाह करने के लिये लालायित हैं वह दिन में न खाती है, न रात को ही उसे निद्रा आती हैं। यदि आप मेरे साथ न चलेंगे, तो
आपकी वियोगाग्नि में वह अपने प्राण त्याग देगी।" ___ वसुदेव ने गुरुजनों के सामने उसकी इन बातों का कोई उत्तर न देकर, समुद्रविजय की ओर देखा, समुद्रविजय ने कहा-“हे भाई! यह शुभ कार्य है, इसलिए मैं तुम्हें सहर्ष जाने की आज्ञा देता हूँ। किन्तु पहले की तरह वहाँ अधिक समय न बिता देना!"
बड़े भाई की आज्ञा मिल जाने पर वसुदेव उन्हें प्रणाम कर धनवती के साथ आकाशगामी वाहन द्वारा गगनवल्लभ नगर में जा पहुँच। वहां पर बालचन्द्रा के पिता काञ्चनदंष्ट्र ने, जो विद्याधरों के राजा थे, उनका बड़ा सत्कार किया और शुभ मुहूर्त में बड़ी धाम धूम के साथ उनसे बालचन्द्रा का विवाह कर दिया। - राजा समुद्रविजय इस बीच रुधिरराज से बिदा ग्रहण कर कंसादिक के साथ अपने नगर को चले गये थे। वहां से प्रतिदिन वसुदेव की प्रतीक्षा करते थे। इधर वसुदेव ने शीघ्र ही काञ्चनराष्ट्र से बीदा ग्रहण कर बालचन्द्रा के साथ अपने नगर के लिए प्रस्थान किया। इसी समय उन्होंने अपनी उन सब स्त्रियों को भी अपने साथ ले लिया, जिनसे उन्होंने पहले ब्याह किया था। इस समय
अनेक विद्याधर और उनके साले आदिक सम्बन्धी भी उनके साथ हो गये। . वसुदेव इन सबके साथ जिस समय विमलमणि विमान में बैठकर शौर्यपुर पहुँचे, उस समय उनका आनन्द हृदय में न समाता था। राजा समुद्रविजय
और समस्त नगर निवासी बड़े आदर के साथ उन्हें नगर में ले गये। वहाँ वसुदेव परिवार के साथ आनन्दपूर्वक अपने दिन व्यतीत करने लगे।
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