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________________ 202 * रोहिणी का पाणिग्रहण नगर छोड़े सौ वर्ष हो गये? इतने समय तक तुम कहां रहे और क्या करते रहे।" ___ इस प्रश्न के उत्तर में वसुदेव ने छोड़ने के समय से लेकर अब तक का सारा हाल उन्हें कह सुनाया। उसे सुनकर समुद्रविजय के साथ ही रुधिरराज को भी बड़ा ही आनन्द हुआ। वे अपने मनमें कहने लगे कि मेरी कन्या ने योग्य पुरुष को ही पसन्द किया है। मणि और काञ्चन का यह मेल मिलाने के . लिए उन्होंने विधाता को भी बहुत धन्यवाद दिया। जरासन्ध को जब मालूम हुआ कि वसुदेव उनके सामन्त समुद्रविजय का छोटा भाई है, तब उनका क्रोध भी हवा हो गया। इस प्रकार थोड़ी देर पहले जहां मार काट और शत्रुता की बातें हो रही थी, वहां अब शान्ति का साम्राज्य स्थापित हो गया। इसके बाद रुधिरराज ने, सभी राजाओं के समक्ष शुभ मुहूर्त में बड़े समारोह के साथ वसुदेव और रोहिणी का विवाह कर दिया। विवाहोत्सव पूर्ण होने पर जरासन्ध आदि राजा अपने अपने स्थान को वापस चले गये, किन्तु रुधिरराज के अनुरोध से कंस समेत समस्त यादव एक वर्ष के लिए वहीं ठहर गये और रुधिरराज का आतिथ्य ग्रहण करते रहे। _ एक बार वसुदेव ने रोहिणी से एकान्त में पूछा-“हे सुन्दरी! स्वयंवर के समय “सभा में एक से एक बढ़कर राजे महाराजे उपस्थित थे, किन्तु उनको पसन्द न कर तुमने मुझे क्यों पसन्द किया। मैं तो उस समय एक साधारण पटहवादक के सिवा और कुछ भी न था?" रोहिणी ने कहा- "हे नाथ! मैंने उस वेश में भी आपको पहचान लिया था। बात यह थी कि मैं प्रज्ञप्ति विद्या की सदा पूजा करती थी। उसने मुझे बतलाया था कि तेरा पति दसवां दशार्ह होगा। स्वयंवर में वह पटहवाद्य बजायगा और यही उसकी पहचान होगी इसीसे मैंने आपको पहचान लिया था।" ___एक दिन राजा समुद्रविजय आदि रुधिरराज की सभा में बैठे हुए थे। उस समय वसुदेव कुमार भी वहीं पर उपस्थित थे, उसी समय एक प्रौढ़ा स्त्री आकाश से उतरकर वहां आयी। और उसने वसुदेव से कहा- “हे कुमार! मेरा नाम धनवती है। मेरे बालचन्द्रा और वेगवती नामक दो कन्याएं हैं। इनमें
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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