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________________ श्री नेमिनाथ - चरित 199 तुम्हें पटह बजाना होगा। उस पटह की ध्वनी सुनते ही राजकन्या तुम्हें जयमाला पहना देगी । " देव की यह शिक्षा हृदय में धारण कर वसुदेव अरिष्टपुर पहुँचे। वहां पर स्वयंवर मण्डप में राजाओं के बीच में न बैठकर वे पहले से ही वेश बदलकर बाजेवालों के बीच में जा छिपे । यथासमय साक्षात् रोहिणी के समान रोहिणी ने मण्डप में पदार्पण किया । उसे देखते ही जरासंध आदि समस्त राजा उस पर मुग्ध हो गये और विविध चेष्टा द्वारा उसका हृदय अपनी ओर आकर्षित करने का उद्योग करने लगे। इधर राजा की आज्ञा मिलते ही रोहिणी की प्रधान परिचारिका ने स्वयंवर में उपस्थित समस्त राजा और राजकुमारों का उसे परिचय दिया, किन्तु उसने किसी को भी पसन्द न किया । लक्ष्य राजकुमारी जंब घूमती घामती बाजेवालों की ओर पहुँची, तब वसुदेव बजाने लगे। उन्होंने उस पटह की ही आवाज में कहा— "हे मृगाक्षी ! तुम हरिणी की भाँति चारों ओर क्या देख रही हो? तुम इर और अपने हदयमन्दिर में तुम्हारी प्रतिमा स्थापित करने के लिए मैं किस प्रकार तैयार बैठा हूँ।” यह शब्द सुनते ही रोहिणी वसुदेव की • ओर मुड़ी और उसी क्षण उसने वसुदेव को जयमाला पहना दी। वसुदेव के गले में जयमाला पड़ते ही चारों ओर हाहाकार मच गया । कुछ लोग वसुदेव को मारने के लिए दौड़ पड़े और कुछ लोग राजकन्या की यह पसन्दगी देखकर उसकी दिल्लगी उड़ाने लगे। इन राजाओं में कोशला नगरी का दन्तवक्र नामक एक राजा भी था । वह बहुत ही नीच प्रकृति का था । · इसलिए उसने जोर जोर से पुकार कर रुधिर राजा से कहा – “यदि इस कन्या का विवाह तुम्हें पटह बजाने वाले से करना था, तो फिर तुमने इन कुलीन राजाओं को क्यों बुलाया था ? कन्या अपनी अज्ञानता के कारण बाजेवाले से ब्याह कर सकती है, परन्तु उसके पिता को इसकी उपेक्षा कदापि न करनी चाहिए। बाल्यावस्था में बच्चों की शिक्षा दीक्षा का भार माता पिता के ही सिर रहता है, इसलिए इस जिम्मेदारी से वे अपने को अलग नहीं कर सकते !" रुधिरराज ने कहा - "हे कोशलेश्वर ! तुम्हारे इन वचनों से मैं कन्या के स्वयंवर में बाधक नहीं बन सकता। स्वयंवर में तो कन्या जिसे पसन्द करे,
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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