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नवाँ परिच्छेद रोहिणी का पाणिग्रहण ...
एक दिन वसुदेव कुमार घोर निद्रा में पड़े हुए थे। इसी समय सूर्पक विद्याधर उन्हें हरण कर ले गया। ज्योंही वसुदेव को यह मालूम हुआ त्योंही उन्होंने उसे एक ऐसा मुक्का जमाया, कि उसने उसी समय छटपटा कर छोड़ दिया। इससे वसुदेव गोदावरी नदी में जा गिरे, वसुदेव उस नदी को पार कर कोल्लापुर नगर में गये। वहां पर राजकुमारी पद्मश्री के साथ उनका विवाह हो गया। परन्तु उस स्थान से भी उन्हें नीलकंठ विद्याधर हरण कर ले गया वसुदेव उसे भी मुक्का जमाकर उसके हाथ से छूट गये। इस बार वे चम्पानगरी के एक सरोवर में जा गिरे। उससे निकल कर वे चम्पापुरी में गये और वहां पर उन्होंने राजमन्त्री की कन्या से विवाह किया। परन्तु वहां से फिर उन्हें सूर्पक उठा ले गया। इस बार उसके हाथ से छुटकारा मिलने पर वे गंगानदी में जा गिरे। गंगा से निकल कर वे मुसाफिरों के साथ घूमते घामते किसी पल्ली में पहुँच गये। वहां पल्लीपति की जरा नामक पुत्री से उन्होंने विवाह किया, जिसके उदर से उन्हें जराकुमार नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। इसके बाद यत्र तत्र विचरण करते समय वसुदेव ने अवन्तिसुन्दरी, नरद्वेषिणी, सूरसेना और जीवयशा आदिक हजारों कन्याओं से विवाह किया। ___एक बार वसुदेव से सुना कि अरिष्टपुर में रुधिर राजा की रोहिणी नामक कन्या का स्वयंवर होने वाला है, इसलिए उन्होंने उस स्वयंवर के लिए प्रस्थान किया। मार्ग में उन्हें एक देव मिला। उसने वसुदेव से कहा—“रोहिणी से तुम्हारा विवाह अवश्य होगा, परन्तु स्वयंवर में सफलता प्राप्त करने के लिए