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श्री नेमिनाथ-चरित * 197 जो विचार उत्पन्न हुआ था, वह भी इस उपदेश के प्रभाव से ठीक उसी प्रकार गायब हो गया, जिस प्रकार सूर्योदय होने पर अन्धकार गायब हो जाता है। - नल अपने पिता के उपदेश से यद्यपि ठीक रास्ते पर आ गये, किन्तु फिर भी उन्हें ऐसा मालूम हुआ मानो वे व्रतपालन में असमर्थ हैं। इसलिये उन्होंने अनशन आरम्भ किया और उस में अनुराग होने के कारण दमयन्ती ने भी उन्हीं का अनुसरण किया—यानी उसने भी अनशन किया। इसी अनशन के फलस्वरूप उन दोनों की मृत्यु हो गयी और वे स्वर्गीय सुख के अधिकारी हुए।” अस्तु!
वसुदेव को यह अद्भुत वृत्तान्त सुनाकर कुबेर ने कहा-“हे यदुकुल भूषण! मृत्यु के बाद वही नल मैं कुबेर के रूप में उत्पन्न हुआ और दमयन्ती भी मेरी स्त्री हुई। वही वहां से च्युत होकर अब कनकवती के रूप में उत्पन्न हुई है। पूर्व जन्म की पत्नी होने के कारण इस पर मुझे मोह उत्पन्न हुआ था और इसीलिए मैं इसे देखने को यहां आया था। हे वसुदेव! इस तरह का मोह सौ जन्म तक पीछा नहीं छोड़ता। मुझे यह देखकर परम सन्तोष हुआ, कि कनकवती को तुमने पत्नी रूप में प्राप्त किया है। मैं तुमसे यह भी बतला देना चाहता हूं कि यह कनकवती इसी जन्म में अपने कर्मों का क्षय कर मोक्ष प्राप्त करेंगी। यह बात मुझे भी विमलस्वामी तीर्थंकर ने उस समय बतलायी थी, जिस समय मैं इन्द्र के साथ महाविदेह में उन्हें वन्दन करने गया था।"
- इस प्रकार कनकवती के पूर्वजन्म का वृत्तान्त सुनाकर कुबेर तो अन्तर्धान हो गये और वसुदेव उसके साथ ब्याह कर आनन्दपूर्वक अपने दिन निर्गमन करने लगे।