________________
श्री नेमिनाथ - चरित 195
साथ अयोध्यापुरी की ओर प्रस्थान किया । वहाँ पहुचने पर रतिवल्लभ नामक उपवन में तंबू डेरे खड़े कर वे अपना कर्त्तव्य स्थिर करने लगे ।
इधर नल के आगमन का समाचार सुनकर कुबेर के प्राण सूख गये । उसमें अब नल से युद्ध करने की शक्ति न थी । इसीलिए वह विशेष रूप से चिन्तित हो उठा। इसी समय नल ने उसके पास एक दूत भेजकर कहला भेजा कि मैं अपना राज्य वापस लेना चाहता हूँ । यद्यपि मैं युद्ध की तैयारी करके यहां आया हूँ, किन्तु तुम ने मेरा राज्य जुएँ द्वारा प्राप्त किया था, इसलिए मैं जुएँ द्वारा भी उसे वापस लेना बुरा नहीं समझता । तुम अपनी इच्छानुसार द्यूत यादो में से एक का निमन्त्रण स्वीकार कर सकते हो। "
इस सन्देश से कुबेर की व्याकुलता दूर हो गयी, उसे जो पसन्द था, वही नल ने कहला भेजा था । द्यूत क्रीड़ा में वह परम निपुण था और उसे विश्वास था कि संसार में कोई भी उसे जीत नहीं सकता। जबसे उसने नल का राज्य जीत लिया था, तब से उसकी हिम्मत और भी बढ़ गयी थी । उसने जूएँ का निमन्त्रण स्वीकार कर लिया। वह समझता था कि इस बार भी विजय होगी, परन्तु यह तो भाग्य का खेल था । उस समय कुबेर का सितारा बुलन्द था, इस समय नल का। जब भाग्यलक्ष्मी प्रसन्न होती है, तब मनुष्य को अनायास सफलता मिलने लगती है । उस समय यदि वह मिट्टी छू लेता है, तो वह भी सोना बन जाता है । पहले जिस प्रकार कुबेर ने नल का राज्य जीत " लिया था, उसी प्रकार नल ने इस बार कुबेर से सारा राज्य जीत लिया ।
परन्तु सज्जन और दुर्जन में बड़ा ही अन्तर होता है । नादान दोस्त से 'दानी दुश्मन भी भला कहा गया है। कुबेर हृदयहीन मनुष्य था और नल • परम दयालु थे। कुबेर ने उनके साथ जो दुर्व्यवहार किया था, उसे वे भूल गये। उन्होंने फिर यही समझा कि यह मेरा छोटा भाई है । इसीलिए उन्होंने पुन: उसे युवराज बना दिया।
राज्य वापस मिलने पर नल ने दमयन्ती के साथ आनन्दपूर्वक नगर प्रवेश कर सबसे पहले कोशलापुरी के समस्त चैत्यों को वन्दन किया। इसके बाद महोत्सव आरम्भ हुआ और नल का पुनः राज्याभिषेक किया गया। इस समय अर्ध भरत के सोलह हज़ार राजा नाना प्रकार की मंगल भेंट लेकर उनकी