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194 * नल-दमयन्ती-चरित्र करने आया। उसे देख, दमयन्ती ने अपने पिता से उसके उपकारों का हाल कह सुनाया, फलत: राजा भीमरथ ने उसका बड़ा ही सत्कार किया और उसे . छाती से लगाकर उसका गौरव बढ़ाया।
अब दमयन्ती के आनन्द का वारापार न था। उसने दीर्घकाल के बाद वह शुभदिन देखा था। ऐसे समय में भला वह उन मनुष्यों को कैसे भूल सकती थी, जिन्होंने विपत्ति के समय उस पर उपकार किया था, या उसे किसी प्रकार का सहारा दिया था। उसने पिता की आज्ञा से दूत भेजकर राजा ऋतुपर्ण रानी चन्द्रयशा, चन्द्रवती और तापसपुर के स्वामी वसन्त श्रीशेखर को भी कुण्डिनपुर बुलाया और एक मास तक अपने पास रखकर उनका आतिथ्य . सत्कार किया। ____ एक दिन सब लोग राज मन्दिर में बैठे हुए आनन्दपूर्वक बातें कर रहे थे। इसी समय आकाश से उतरकर एक परम तेजस्वी देव वहां आया। उसने दमयन्ती को प्रणाम कर कहा-“हे देवि! मैं पूर्वजन्म में विमलमति नामक तापसपति था और आपही के आदेश से मुझे ज्ञान उत्पन्न हुआ था। मृत्यु होने पर मैं सौधर्म देवलोक के केसर नामक विमान में केसर नामक देव हुआ। मैं मिथ्यादृष्टि, किन्तु आप ही के उद्योग से मुझे जैन धर्म से अनुराग उत्पन्न हुआ था। यदि उस समय मुझे आप का उपदेश न मिला होता तो मैं सुर सम्पत्ति का भोक्ता कदापि न होता। आज इसी कारण से मैं आप के निकट कृतज्ञता प्रकट करने आया हूँ। इतना कहने के बाद वह देव वहां पर सुवर्ण की वृष्टि कर अन्तर्धान हो गया।
इसके बाद भीमरथ, दधिपर्ण, ऋतुपर्ण, वसन्त श्रीशेखर तथा अन्यान्य राजाओं ने नल का राज्याभिषेक कर कई दिनों तक महोत्सव मनाया। महोत्सव पूर्ण होने पर सब राजाओं ने सलाह कर निश्चित किया अब जिस तरह हो, कुबेर से राज्य वापस लेना चाहिए। निदान नल के अदेशानुसार सब राजाओं ने अपनी अपनी सेना एकत्र की। जब समस्त सेना एक स्थान में एकत्र हुई तो ऐसा मालूम होने लगा, मानो सैनिकों का महासागर उमड़ पड़ा है। ऐसी सेना को देखकर परम प्रतापी राजा नल का साहस सौगुना बढ़ गया। शुभ मुहर्त में कुबेर से अपनी राज्य लक्ष्मी वापस लेने के लिए नल ने इस. सेना के