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192 * नल-दमयन्ती-चरित्र "अब मुझे पूरा विश्वास और प्रतीति हो गयी है, कि यह पदार्थ मेरे पतिदेव के ही बनाये हुए हैं। ये कुब्ज या वामन किस प्रकार हो गये, वह मैं नहीं कह सकती, किन्तु इनके नल होने में कोई सन्देह नहीं किया जा सकता। इस. सूर्यपाक के अतिरिक उनकी एक परीक्षा और भी ऐसी है, जिससे मैं तुरन्त उनको पहचान सकती हूं। मेरे किसी भी अंग में उनका हाथ या अंगुली स्पर्श होते ही मेरा समूचा शरीर रोमाञ्चित हो उठता है। आप ऐसा प्रबन्ध करिये कि तिलक करने के बहाने वे मेरे ललाट को या मेरे किसी दूसरे अंग को एक अंगुली द्वारा स्पर्श करें। यदि वे नल होंगे, तो मैं उसी समय उन्हें पहचान लूंगी।" ___दमयन्ती का यह वचन सुनकर भीमरथ ने उस कुब्ज से पूछा- “भाई; सच कहो, क्या तुम नल हो?".
कुब्ज ने अपने दोनों कानों पर हाथ रखते हुए कहा-“भगवान् ! भगवान् ! आप यह क्या कहते हैं ? देवता स्वरूप वे नल कहां और बीभत्स रूप मैं कहां? मैं नहीं समझ सकता कि मेरे और उनके रूप में जमीन आसमान का अन्तर होने पर भी आप लोग ऐसा सन्देह क्यों कर रहे हैं?". ____ भीमरथ ने कहा- "अच्छा भाई, तुम नल नहीं हो तो न सही, हम इसकी परीक्षा आप कर लेंगे! तुम अपनी एक अंगुली से दमयन्ती का कोई अंग स्पर्श कर आओ! बस, फिर तुम्हें हम कोई कष्ट न देंगे।"
कुब्ज वेशधारी नल ने इसके लिए तरह-तरह के बहाने किये, किन्तु किसी तरह भी उनका प्राण न बच सका। उन्हें विवश होकर राजा भीमरथ का यह प्रस्ताव स्वीकार करना पड़ा। दमयन्ती के कमरे में जाकर उन्होंने एक अंगुली द्वारा ज्यों ही दमयन्ती का ललाट स्पर्श किया, त्योंही उसका शरीर कदम्बवृक्ष की भांति रोमाञ्चित हो उठा। बस, फिर क्या था, दमयन्ती सारा संकोच छोड़कर उनके चरणों से लिपट गयी। उसने गरम आंसुओं से उनके चरणों को धोते हुए कहा-"नाथ! उस समय तो आप मुझे सोती हुई जंगल में छोड़ आये थे, परन्तु अब आप कहां जायँगे? मैंने अपना यह खोया हुआ धन आज बहुत दिनों के बाद पाया है!"
नल के लिए भी अब अधिक समय तक कुब्ज के रूप में रहना कठिन