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श्री नेमिनाथ-चरित * 191 इसलिए इसका फल तुम्हें अतिशीघ्र और संभवत: आज ही मिलेगा। स्वप्नशास्त्र के अनुसार तुम्हारे स्वप्न का फल यही मालूम होता है।"
थोड़ी ही देर में मंगल नामक एक अनुचर ने राजा भीमरथ को दधिपर्ण के आगमन का समाचार कह सुनाया। राजा भीमरथ यह सुनकर नगर के बाहर गये और बड़े सम्मान के साथ दधिपर्ण को नगर में लेने आये। इसके बाद उन्होंने एक राजभवन में उनको ठहरा कर भोजनादिक द्वारा उनका आतिथ्य सत्कार किया।
राजा दधिपर्ण को भीमरथ के इस स्वागत सत्कार से पूर्ण सन्तोष हुआ, परन्तु उनकी समझ में यह न आता था, कि जिस स्वयंवर के लिए वे इतनी दूर से यहां आये थे, उसकी कोई तैयारी नगर में नहीं दिखायी दे रही थी। वे कहने लगे, शायद स्वयंवर की तिथि लिखने या पढ़ने में भूल हुई होगी। इतने ही में राजा भीमरथ उनके पास आये। दधिपर्ण ने सोचा कि अब इनसे इस विषय में पूछताछ करनी चाहिए। किन्तु परम चतुर राजा भीमरथ, उनका मनोभाव पहले ही कार्य के लिये बुलाया है, उसकी बातचीत हम लोग फिर किसी समय एकान्त में करेंगे। किन्तु इस समय तो मैं एक दूसरे ही कार्य से आपके पास आया हूँ। मैंने सुना है कि आपके साथ जो कुबड़ा आया है, वह सुर्यपाकी है। मैं उसकी इस विद्या का चमत्कार देखना चाहता हूँ। अन्त:पुर में रानी आदि भी इसके लिये परम उत्सुक हैं। क्या आप थोड़ी देर के लिए उसे मेरे साथ भेजने की कृपा करेंगे?
राजा दधिपर्ण भीमरथ का यह अनुरोध भला कैसे अमान्य कर सकते थे? उन्होंने उसी समय कुब्ज को भीमरथ के साथ कर दिया। भीमरथ उसे सम्मान पूर्वक अपने महल में ले गये। वहां उन्होंने उसे चावल आदि देकर अपनी अद्भुत विद्या का चमत्कार दिखलाने को कहा। कुब्ज ने, उस सामग्री द्वारा क्षणमात्र में उसी तरह स्वादिष्ट भोजन तैयार कर दिया, जिस प्रकार उसने पहले दधिपर्ण राजा के यहां तैयार किया था। राजा भीमरथ ने सपरिवार उन पदार्थों को चक्खा। दमयन्ती को उन्होंने यह चीजें विशेष रूप से दिखायी, क्योंकि उसीके कहने से उसकी परीक्षा का यह आयोजन किया गया था।
कुब्ज द्वारा बना हुआ वह भोजन चखते ही दमयन्ती ने पिता से कहा