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190 * नल-दमयन्ती-चरित्र फलों को गिराकर गिन लो। समूचे वृक्ष में सब मिलाकर पूरे अठारह हजार फल हैं।"
कुब्ज ने अपने कथनानुसार एक ही मुष्टि प्रहार से समस्त फल गिरा. दिये। गिराने के बाद उनको गिना, तो वे पूरे अठारह हजार निकले, न एक कम न अधिक। कुब्ज को ये देखकर बड़ा ही विस्मय हुआ। वह राजा दधिपर्ण की इस विद्या पर उसी प्रकार मुग्ध हो गया, जिस प्रकार राजा उसकी अश्य विद्या पर मुग्ध हो गये थे।
राजा ने कहा- “यदि तुम अपनी अश्य विद्या मुझे सिखा दो, तो मैं भी अपनी यह विद्या तुम्हें सिखाने के लिए तैयार हूँ।" इस पर कुब्ज राजी हो . गया, फलत: उन दोनों ने अपनी अपनी विद्या का परस्पर परिवर्तन कर लिया।
दधिपर्ण ने सारी रात एक समान गति से यात्रा की। सुबह सूर्योदय के पहले ही उनका रथ कुण्डिनपुर पहुंच गया। कुण्डिनपुर को देखते ही दधिंपर्ण, के होठों पर हँसी आ गयी। उन्होंने सोचा कि जब यहां तक आने में सफलता मिली है, तब दमयन्ती को वरण करने में भी देव अवश्य ही सफलता प्रदान करेगा।
उधर दमयन्ती ने उसी दिन प्रात: एक शुभ स्वप्न देखा। उसे ऐसा मालूम हुआ मानो निवृत्ति देवी कोशला, नगरी का उद्यान ले आयी है। उस उद्यान में पुष्प और फल युक्त एक आम्र वृक्ष है। देवी की आज्ञा से वह उस वृक्ष पर चढ़ गयी, यहां देवी ने उसे एक खिला हुआ कमल दिया। इसी समय एक पक्षी, जो पहले ही से उस वृक्ष पर बैठा हुआ था, भूमि पर गिर पड़ा।
यह स्वप्न देखते ही दमयन्ती की आंखे खुल गयी। उसने अपने पिता से इसका हाल कहा। वे इससे बहुत ही प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा-“बेटी! यह स्वप्न बहुत ही अच्छा मालूम होता है, तुमने जो निवृत्ति देवी देखी है, वह तुम्हारी पुण्यराशि है। कौशला का उद्यान तुम्हें ऐश्वर्य दिलाने वाला है। आम्रवृक्ष पर चढ़ना पति समागम सूचित करता है। खिला हुआ कमल तुम्हारा सतीत्व है जो नल के मिलन से शीघ्र ही विकसत होने वाला है। वृक्ष से पक्षी का गिरना कुबेर का पतन सूचित करता है। उसके राज्यभ्रष्ट होने में अब अधिक देर न समझनी चाहिए। यह स्वप्न तुमने प्रभात काल में देखा है,