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श्री नेमिनाथ-चरित * 11
- राजकुमार का यह उत्तर पढ़कर धनवती को बड़ा ही आनन्द हुआ। वह अपने मन में कहने लगी, “उनके इस उत्तर से तो ऐसा मालूम होता है कि वे मेरा मनोभाव समझ गये हैं। इसलिए उन्होंने यह प्रेमोपहार-रत्नहार भी भेजा
___ यह सोचकर धनवती ने प्रेमपूर्वक वह रत्नहार गले में पहन लिया और उस दूत को पुरस्कार देकर विदा कर दिया।
इधर राजा सिंह ने धनवती के ब्याह की तैयारी करनी शुरू कर दी। कुछ ही दिनों के बाद एक दिन शुभ मुहूर्त में, उन्होंने अपने मन्त्रियों के साथ धनवती-को अचलपुर के लिए विदा किया। साथ ही अनेक दास-दासियाँ और धन धान्यादिक विपुल सामग्री भी भेज दी, जिससे विवाह कार्य बड़ी धूमधाम से सम्पादित हो सके। चलते समय धनवती के माता-पिता ने उसे प्रसंगोचित उपदेश भी दिया। धनवती उस उपदेश को अपने हृदय में धारण कर, वियोग दु:ख से दुःखित होती हुई, पालखी में बैठ, छत्र और चामर
आदिक राज-चिह्नों के साथ अचलपुर के लिए रवाना हो गयी। ____ अचलपुर में उसके आगमन का समाचार पहले ही पहुंच चुका था, लोग . उसे देखने और उसका स्वागत करने के लिए बहुत उत्सुक हो रहे थे। नगर में पहुँचते ही जन-सागर उमड़ पड़ा। लोगों ने पुष्पवृष्टि और हर्षनाद द्वारा उसका
स्वागत किया जो उसे देखता, वही कहता यह तो मानो साक्षात् लक्ष्मी है। · विधाता ने यह अच्छी जोड़ी मिलायी है। . .
.. राजा विक्रमधन ने सब लोगों का बड़ा स्वागत किया और एक राजमहल . में उन्हें ठहराया। इसके बाद शुभ मुहूर्त में बड़ी धूम-धाम के साथ विवाह ' कार्य सम्पन्न हुआ। उस समय समूचा नगर ध्वजा और पताकाओं से सजाया गया और घर-घर में मंगलवार किये गये। कई दिन तक नगर में बड़ी धूमधाम और चहल-पहल रही। देवेन्द्रों ने भी यह महोत्सव देखकर अपने को धन्य समझा। धनवती के मनोरथ भवितव्यता ने पूरे कर दिये। राजकुमार धन सदा के लिए उसका जीवन धन बन गया। जिस प्रकार नागलता से सुपारी, बिजली से मेघ और रति से कामदेव शोभा प्राप्त करते हैं, उसी प्रकार धनवती को पाकर धनकुमार शोभा पाने लगा। वे दोनों अभिन्न हृदय बनकर एक प्राण देह की कहावत चरितार्थ करने लगे।