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________________ 188 * नल-दमयन्ती-चरित्र "दमयन्ती से ब्याह करने की तो बड़ी इच्छा है, परन्तु स्वयंवर तो कल ही है। एक दिन में किसी तरह भी वहां नहीं पहुंचा जा सकता। निमन्त्रण दो चार दिन पहले आया होता, तो कितना अच्छा होता। अब मैं क्या करूँ?" .. ___इस प्रकार सोचते हुए राजा बहुत उदास हो गये। किसी तरह उनकी इस उदासी का हाल उस कुब्ज को भी मालूम हो गया। वह अपने मन में कहने लगा–“यह समाचार बहुत ही चिन्ताजनक है। दमयन्ती तो महासती है। वह दूसरे पुरुष की इच्छा ही कैसे कर सकती है ? यदि वह इच्छा भी करेगी तो मेरे जीते जी किसी दूसरे के अन्त: पुर की शोभा बढ़ायगी? नहीं! ऐसा कदापि नहीं हो सकता। मुझे अब किसी तरह वहां अवश्य पहंचना चाहिए। मैं दधिपर्ण, के साथ अनायास वहां जा सकता हं। वे चाहे तो मैं उन्हें छ: प्रहर में कुण्डिनपुर पहुंचा सकता हूँ।" यह सोचकर कुब्ज ने राजा से पूछा- “हे राजन् ! आप क्यों उदास हैं? क्या आप मुझे अपनी उदासी का कारणं बतला सकते हैं ?" ___ दधिपर्ण ने कहा-“भाई क्या कहूं, मुझ में कुछ कहते नहीं बनता। नल का देहान्त हो जाने के कारण राजा भीमरथ दमयन्ती का दूसरा स्वयंवर कर रहे हैं। निमन्त्रण पत्र में स्वयंवर की तिथि चैत्र शुक्ल पञ्चमी लिखी है। दूत को तो वहां से आने में इतने दिन लग गये, अब मैं छ: प्रहर में वहां कैसे पहुंच . सकता हूँ ? हे कुब्ज! यही मेरी उदासी का कारण है।" कुब्ज ने कहा-“राजन् ! आप चिन्ता न कीजिए। मैं आप को निर्दिष्ट समय के पहले वहां पहुंचा सकता हूं। आप अपनी सवारी के लिए एक अच्छा रथ और दो घोडे अश्वशाला से मंगा लीजिए। सारथी की जरूरत नहीं। उसका काम मैं स्वयं कर लूँगा।" ___ कुब्ज की यह बात सुनकर राजा दधिपर्ण आश्चर्य में पड़ गये। वे अपने मन में कहने लगे-“यह कुब्ज कोई साधारण मनुष्य नहीं मालूम पड़ता। शायद यह कोई देव या विद्याधर होगा। तभी तो समय समय पर यह ऐसे अलौकिक कार्य कर दिखलाता है। “अस्तु, उन्होंने कुब्ज से कहा-“तुम स्वयं अश्वशाला से अपनी पसन्दगी के घोड़े और रथ ले आओ। मैं इसी समय चलने के लिए तैयार हूँ।"
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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