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________________ श्री नेमिनाथ - चरित 187 उसका सूर्यपाकी होना आदि सभी बातें विस्तार पूर्वक कह सुनायी। उसने राजा को सोने की माला, लाख रुपये और वे वस्त्राभूषण दिखलाये, जो कुब्ज ने उसे ईनाम दे दिये थे। साथ ही उसने वह दो श्लोक भी राजा को सुना दिये, जिनका बार-बार पाठ करने पर कुब्ज की आंखों में अश्रुधारा बह निकली थी। उसने इस बात पर विशेष रूप से जोर दिया, कि कुब्ज का रूप देख कर स्वप्न में भी कल्पना नहीं की जा सकती, कि यह मनुष्य नल हो सकता है। असाधारण दमयन्ती ने विप्रराज की यह सब बातें बड़े ध्यान से सुनी। उसने अपने पिता से कहा- "हे पिताजी ! हाथी को वश करना, सूर्यपाकी होना, दानशीलता आदि सभी बातें ऐसी है, जो मेरे संदेह को पुष्ट करती हैं। केवल उसका रूप ही ऐसा है जो हमारी धारणा को पलट देता है, फिर भी मुझे मालूम होता है कि वह नल ही है। किसी आहार या कर्मदोष से उनका शरीर विकृत हो गया होगा । आप किसी तरह एक बार कुब्ज को यहां बुलाइये, • जिससे मैं स्वयं उसकी परीक्षा ले सकूँ ।" राजा भीमरथ ने कहा- ' - " हे पुत्री ! मैं भी यही बात सोच रहा था । मैं राजा दधिपर्ण को तुम्हारे स्वयंवर की झूठी खबर देकर यहां बुलाऊँगा । निमन्त्रण पाकर वे यहां अवश्य ही आयेंगे, क्योंकि पहले भी वह तुमसे ब्याह करने के लिए बहुत लालायित थे । जब तुमने नल से ब्याह कर लिया था, तब . वे बहुत निराश हो गये थे । दधिपर्ण के साथ वह कुब्ज भी अवश्य ही आयगा, क्योंकि यदि वह नल होगा तो अपनी पत्नी का दूसरे के हाथ में जाना कदापि सहन न करेगा। इन लोगों को बुलाने में एक और युक्ति से भी काम लिया जा · सकता है। स्वयंवर की तिथि उनको इतनी समीप लिखनी होंगी, कि यहां आने के लिए भी काफी समय न हो । नल अश्वविद्या के जानकार है। वे अश्वों को वायुवेग से चला सकते हैं। यदि वह कुब्ज नल होगा, तो समय कम होने पर भी दधिप को निर्दिष्ट समय के पहले ही यहां पहुंचा देगा | इससे नल की परीक्षा भी हो जायगी । " दमयन्ती को पिता की यह युक्ति पसन्द आ गयी, इसलिए उन्होंने उसी दिन एक दूत द्वारा दधिपर्ण के यहां स्वयंवर का निमन्त्रण भेज दिया। राजा दधिपर्ण उस निमन्त्रण को पढ़कर बड़ी चिन्ता में पड़ गये। कहने लगे --
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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