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186 नल-दमयन्ती - चरित्र
विराज मुख से बार-बार यह श्लोक सुनकर नल को दमयन्ती की याद आ गयी, फलतः उसके नेत्रों से अश्रुधारा बहने लगी। उसकी यह अवस्था देखकर विप्रराज ने पूछा – “भाई कुब्ज ! तुम रुदन क्यों कर रहे हो ?"
हुण्डि अर्थात् उस कुब्ज ने उत्तर दिया – “ आप बहुत ही करुण स्वर से इन श्लोकों को पढ़ते हैं, इसलिए मेरी आंखों में आंसू आ गये। क्या आप इन श्लोकों का अर्थ बतलाने की कृपा न करेंगे ?"
विप्रराज को तो उससे ऐसी बातें कहनी ही थी, इसलिए उन्होंने तक्रीड़ा से लेकर दमयन्ती के कुण्डिनपुर पहुँचने तक का सारा हाल उसे कह सुनाया। साथ ही उसने कहा कि - " राजा दधिपर्ण के दूत ने हमारे राजा से यह कहा था कि तुम सूर्यपाकी हो, किन्तु दमयन्ती का कहना है कि नल के सिवा संसार में और कोई सूर्यपाकी है ही नहीं, इसलिए उसे सन्देह हो गया कि शायद तुम नल ही हो। अपना यह सन्देह दूर करने के लिए ही उसने पिता से विनय अनुनय कर तुम्हें देखने के लिए मुझे यहां भेजा है । परन्तु विकृत अंगवाले तुम कुब्ज कहां और दिव्य शरीर धारण करने वाले वे नल कहाँ ? कहां खद्योत ओर कहां सूर्य ? जहां आते समय मुझे जो शुभ शकुन हुए थे, वे सब बेकार हो गये। तुम नल नहीं हो। "
विप्रराज की यह सब बातें सुनकर कुब्ज का हृदय और भी मर्माहत हो उठा। उसने जब देखा कि अब धैर्य का बांध टूटना ही चाहता है, तो वह विप्रराज को आग्रह पूर्वक अपने घर ले गया। वहां पर उसने उनसे कहा“आपके मुख से नल और दमयन्ती का वृत्तान्त सुनकर मुझे बड़ा ही आनन्द हुआ है । कहिए, इसके बदले में मैं आपकी क्या सेवा करूं?"
इस प्रकार मीठे वचन कहकर उसने भोजनादिक द्वारा विराज का बड़ा ही सत्कार किया। इसके बाद जब उन्होंने वहां से चलने की इच्छा प्रकट की, तब राजा दधिपर्ण ने उसे जो वस्त्राभूषण दिये थे, वे सब उसने उनको दे दिये । विप्रराज उसकी जय मनाते हुए सकुशल कुंडिनपुर लौट आये।
कुंडिनपुर में आकर विप्रराज ने राजा भीमरथ को कुब्ज़ का रूप उसके अंग प्रत्यंग की विकृति, उसका हाथी को वश करना, उसकी दानशीलता,