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श्री नेमिनाथ-चरित * 185 उसे राजा नल को स्वयं शिक्षा दी थी, इसलिए वह सूर्य विद्या द्वारा तरह तरह के भोग बना सकता है।"
दूत की यह बात सुनकर राजा भीमरथ ने तो कुछ भी न कहा, किन्तु चतुरा दमयन्ती के कान खड़े हो गये। उसने कहा-“हे पिताजी! किसी चतुर दूत को भेजकर जरा जांच कीजिए। कि वह आदमी कैसा है ? मुझे जहां तक पता है, इस संसार में नल के सिवा और कोई भी मनुष्य सूर्यपाकी नहीं है। संभव है कि वे ही रूप परावर्तन कर वहां वास करते हो!" ____ राजा भीमरथ ने दमयन्ती के कथनानुसार जांच करना स्वीकारकर लिया। उन्होंने इस काम के लिए कुशल नामक एक कार्य कुशल ब्राह्मण को पसन्द किया। उन्होंने उसे सब मामला समझाकर कहा-“तुम सुसुमारपुर जाकर राजा के उस रसोइये को देख आओ, साथ ही इस बात का भी पता ले आओ कि उसने यह कला कहां सीखी थी। हमें सन्देह है कि वह शायद नल होगा, इसलिए अच्छी तरह जांच करने की जरूरत है। _ विप्रराज कुशल, राजा के आदेशानुसार शीघ्र ही सुसुमारपुर जा पहुंचा। वहां इधर उधर से पता लगाकर वे उस कुब्ज के पास गये, किन्तु उसे देखते '. ही उनकी आशा पर पानी फिर गया। वे अपने मन में कहने लगे—“कहां
नल और कहां यह ? कहां मेरु और कहां राई ? दमयन्ती को वृथा ही नल का भ्रम हआ है। लेकिन खैर, अब यहां तक आये हैं, तो अच्छी तरह जांच ही क्यों न कर लें? इसमें अपना क्या जाता है ? यह सोचकर विप्रराज उस कुब्ज के सामने निम्नलिखित दो श्लोक वारंवार उच्चारण करने लगे
निघृणानां निस्त्रयाणां, निःसत्वानां दुरात्मनाम्। .. धूर्वही नल एवैक: पत्नी तत्त्याज यः सतीम्॥1॥
सुप्तामेकाकिनी मुग्धां, विश्वस्तांत्यजतः प्रियाम्।
उत्सेहाते कथं पादौ, नैषधेरल्प मेधसः ॥2॥ . अर्थात्-“निर्दयी, निर्लज, निर्बल और दुर्जनों में नल ही सब से
बढ़कर है, क्योंकि उसने अपनी सती स्त्री को त्याग दिया है। उस मुग्धा और विश्वस्त प्रियतमा को सोती हुई अवस्था में अकेली छोड़कर उस अल्पबुद्धि नल के पैर आगे किस प्रकार बढे होंगे?"