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184 * नल-दमयन्ती-चरित्र
तुम्हारी इच्छा हो तो और भी कोई चीज मांग सकते हो।"
___ कुब्ज ने कहा-“अच्छा, महाराज। यदि आप देना ही चाहते हैं तो . मेरी बात मानकर अपने राज्य से शिकार और शराब खोरी-यह चीजें दूर कर दीजिए।"
राजा ने कहा-“तथास्तु!" उसी दिन एक राजाज्ञा प्रकाशित कर इन दोनों के लिए राज्य भर में मनाई कर दी गयी। __इसके बाद उस कुब्ज ने वहां से अन्यत्र जाने की इच्छा प्रकट की, किन्तु राजा दधिपर्ण ने अत्यन्त आग्रह पूर्वक उसे एकान्त में बुलाकर पूछा"हे कुब्ज! तुम कौन हो, कहां के रहने वाले हो और इस समय कहां से आ रहे हो, यह सब बातें जानने की मुझे बड़ी इच्छा है। मैं समझता हूं कि यह सब बातें बतलाने में तुम्हें कोई आपत्ति न होगी।"
कुब्ज ने कहा- “राजन् ! मैं कोशलेश्वर राजा नल की पाकशाला में काम करता था। मेरा नाम हुण्डिक है। वहीं पर मैंने सब कलाएं सीखी थी। जुएं में नल के छोटे भाई कुबेर ने उनका समूचा राज्य जीत लिया, इसलिए वे दमयन्ती को लेकर जंगल में चल गये। वहां पर उनकी मृत्यु हो गयी। मैंने कपटी कुबेर के आश्रय में रहना उचित न समझा, इसलिए मैं आपके नगर को चला आया।"
कुब्ज ने मुख से नल का मृत्यु-समाचार सुनकर राजा दधिपर्ण को बहुत ही दुःख हुआ। वे सपरिवार इस तरह रुदन करने लगे, मानो उनका सगा भाई मर गया हो। इसके बाद उन्होंने यथा विधि नल की उत्तर क्रिया भी की। कुब्ज वेशधारी नल यह सब देखकर मन ही मन हँस रहे थे, किन्तु वे अपना वास्तविक रहस्य प्रकट करना न चाहते थे, इसलिए उन्होंने कुछ और कहना उचित न समझा।
एक बार किसी आवश्यक कार्य से राजा दधिपर्ण ने अपना एक दूत दमयन्ती के पिता राजा भीमरथ के पास भेजा। राजा भीमरथ ने उसका बड़ा ही सत्कार किया और उसे कई दिन अपने पास रक्खा। एक दिन उस दूतने बातचीत के सिलसिले में राजा भीमरथ से कहा-“हे स्वामिन् ! मेरे स्वामी के यहां एक ऐसा आदमी है, जो राजा नल की पाकशाला में काम करता था।