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श्री नेमिनाथ-चरित * 183
किन्तु राजा को इस बात पर विश्वास ही न होता था कि ऐसा कुरुप आदमी पाकशास्त्र में निपुण होगा। उन्होंने कौतूहलवश उस कुब्ज को चावल आदि सामग्री दिला दी और उनसे उत्तमोत्तम भोजन बना लाने का आदेश दिया। तदनन्तर कुब्ज ने वह सामग्री सूर्य के उत्ताप में रखकर सुर्य विद्या स्मरण किया, फलत: अपने आप सब भोजन पदार्थ तैयार हो गये। कुब्ज उन पदार्थों को यथाविधि छोटे बड़े पात्रों में सजाकर राजा के पास ले गया। राजा ने उन सभी पदार्थों को चक्खा। जिस वस्तु को वे चखते, उसीमें उन्हें अलौकिक स्वाद मालूम पड़ता था, ऐसे स्वादिष्ट पदार्थ उन्हें आज तक कभी भी नसीब न हुए थे। इसलिए जिस वस्तु को वे एक बार खाते, उसी को बार-बार खाने की इच्छा करते। यदि एक पदार्थ छोड़कर दूसरा खाते तो वह पहले से भी बढ़कर स्वादिष्ट मालूम पड़ता था। राजा दधिपर्ण कुब्ज की यह करामात देखकर हैरान
हो गये।
भोजन करने के बाद उन्होंने कुब्ज को फिर अपने पास बुलाकर कहा"हे कुब्ज! तुम वास्तव में पाकशास्त्र के अद्भुत ज्ञाता हो। मैंने कुछ दिन नल की सेवा की थी। उस समय सूर्य विद्या द्वारा मैंने उन्हें ऐसे ही पदार्थ तैयार करते देखा था। मैंने यह भी सुना था कि उनके सिवा इस संसार में और किसी को भी यह कला मालूम नहीं है। इसलिए हे कुब्ज! तुम नल तो नहीं हो?",
: कुब्ज ने राजा के इस प्रश्न का कोई उत्तर न देकर सिर्फ अपना सिर हिला दिया। राजा दधिपर्ण भी अपने मन में कहने लगे—“कहां यह कुब्ज
और कहां नल? कहां इस का यह विकृत रूप और कहां नल का वह अद्भुत . सौन्दर्य ? नल तो देवता और विद्याधरों से भी अधिक सुन्दर हैं। मैंने उन्हें स्वयं देखा है। कोशला नगरी यहां से दो सौ योजन दूर है, साथ ही नल अर्धभरत के स्वामी है, इसलिए उनका यहां आना भी संभव नहीं। यह मेरी अज्ञानता ही है, जो इसके साथ में नल की समानता कर रहा हूं।" ___इस प्रकार विचारकर राजा दधिपर्ण ने अपने मस्तिष्क से यह विचार निकाल दिया। फिर भी वे उस पर अत्यन्त प्रसन्न थे, इसलिए उन्होंने एक लाख रुपये, पांच सौ गांव और अनेक वस्त्राभूषण उसे पुरस्कार में दिये। कुब्ज ने गांवों को छोड़कर सभी चीजें ले ली इस पर राजा ने फिर कहा हे कुब्ज