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182 * नल-दमयन्ती-चरित्र
कुब्ज वेश धारी नल यह सुनते ही छाती ठोंक कर मैदान में आ गये। उन्होंने कहा-“राजन् ! आप वहीं से खड़े खड़े तमाशा देखिए, मैं अभी इस हाथी को वश कर लेता हूँ।"
नल की यह बात अभी पूरी भी न हुई थी, कि हाथी चिग्घाड़ करता हुआ उनके पीछे दौड़ा। परन्तु नल इससे भयभीत न हुए। वे घूमकर उसके सामने आ गये। हाथी दूने वेग से उन पर झपटा लोग बड़े जोर से चिल्ला उठे। सबने यही समझा कि इस कूबड़े को अब यह हाथी कदापि जीता न छोड़ेगा। लोगों ने उनसे भाग जाने को कहा, लेकिन नल केसरी सिंह की भांति उसके सामने डट गये। वे तरह तरह से पैंतरे बदलकर हाथी को दौड़ाने और थकाने लगे। कभी वे गेंद की तरह इधर उछल जाते और कभी उधर। कभी खड़े हो जाते और कभी भूमि पर लेटे रहते। जिस प्रकार सपेरा सर्प को छकाता है, उसी प्रकार उन्होंने अपने कार्यो द्वारा उस हाथी को परेशान कर डाला। ___ अन्त में जब हाथी कुछ थककर कमजोर हो गया, तब उसके गले की जंजीर पर पैर रख, वे सिंह की भांति उछल कर उसके कन्धे पर चढ़ गये, इसके बाद वे हाथ में अंकुश लेकर उसे इच्छानुसार इधर उधर चलाने लगे। जो हाथी कुछ देर पहले तूफान की तरह इधर उधर दौड़ता था, वही नल के हाथ में पड़कर भेंड बकरी की तरह शान्त हो गया। लोगों ने उनके इस कार्य से प्रसन्न हो, जय जयकार की ध्वनि से आकाश गुंजा दिया। राजा दधिपर्ण ने अपने गले से सोने की माला उतारकर उनके गले में डाल दी। चारों ओर यही चर्चा होने लगी कि जिस हाथी को बड़े बड़े योद्धा वश में न कर सके, उसे एक कूबड़े ने वश कर लिया।
नल उस हाथी को मदरहित बनाकर आलान स्तम्भ के पास ले गये और वहां उसके कन्धे से उतर कर उसे जंजीरों से जकड़ दिया। इसके बाद राजा ने सम्मान पूर्वक कुब्ज (नल) को बुलाकर पूछा-“हे कुब्ज! हाथियों को वश करने के अलावा क्या और भी कोई कला तुम जानते हो?"
कुब्ज ने कहा-“महाराज! आप और क्या देखना चाहते है? मुझे पाकशास्त्र का थोड़ा बहुत ज्ञान है। आप चाहें तो उस विद्या का चमत्कार भी मैं आप को दिखा सकता हूं।"