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________________ 180 * नल-दमयन्ती-चरित्र सर्प को जो दूध पिलाता है, उसे भी वह काटे बिना नहीं रहता।" नल यह बातें कह ही रहे थे, कि विष के प्रभाव से उनका शरीर कुबड़ा, केश प्रेत की भांति पीले, होंठ ऊंट की तरह लम्बे, हाथ पैर छोटे, और पेट बहुत बड़ा हो गया। अंगों में इस प्रकार विकृति आ जाने से वे बहुत बदसूरत दिखायी देने लगे। इससे उन्हें बड़ा ही दुःख हुआ और वे अपने मन में कहने लगे—“इस प्रकार कुरूप होकर जीने की अपेक्षा तो मरना ही अच्छा है। अब मुझे दीक्षा ले लेनी चाहिए, ताकि इस परिताप से सदा के लिये छुटकारा मिल जायगा।" परन्तु इतने ही में उन्होंने आश्चर्य के साथ देखा कि वह सर्प सुन्दर वस्त्रभूषणों से विभूषित तेजपुञ्ज के समान एक देव बन गया है। उसने नल से कहा-“हे नल. कुमार! तुम दुःखी मत हो! मैं तुम्हारा पिता निषध हूं। मैंने तुम्हें राज्य देकर दीक्षा ले ली थी। उसके प्रभाव से मैं ब्रह्मलोक में देव हुआ। वहां पर अवधिज्ञान से तुम्हारी दुर्दशा का हाल मालूम होने पर मैंने मायासर्प का रूप धारण कर तुम्हें कुरुप बना दिया है। जिस प्रकार कड़वी दवा पीने से रोगी का उपकार ही होता है, उसी प्रकार इस कुरुप से भी तुम्हें लाभ ही होगा। तुमने अपने राजत्वकाल में अनेक राजाओं को अपना दास बनाया था। इसलिए वे सब तुम्हारा अपकार कर सकते है। परन्तु तुम्हारा रूप परिवर्तित हो जाने से वे अब तुम्हें पहचान न सकेंगे, फलत: तुम उनसे सुरक्षित रह सकोंगे। दीक्षा लेने का विचार तो इस समय तुम भूलकर भी मत करना, क्योंकि तुम्हें अभी बहुत भोग भोगने बाकी हैं। जब दीक्षा लेने का उपयुक्त समय आयगा, तब मैं स्वयं तुम्हें खबर दूंगा। इस समय तो तुम यही समझ लो कि जो कुछ छुआ है,वह तुम्हारे भले ही के लिए हुआ है। मैं तुम्हारा शुभचिन्तक हूं, इसलिए मेरे द्वारा स्वप्न में भी तुम्हारा अपकार नहीं हो सकता।" ___ इतना कह उस देव ने नल को एक बिल्व फल और एक रत्न पिटारी देते हुए कहा—“इन दोनों चीजों को बड़े यत्न से रखना। जब तुम्हें अपना असली रूप धारण करना हो, तब इस फल को फोड़ डालना। इसे फोड़ने पर इसके अन्दर तुम्हें देव दूष्य वस्त्र दिखायी देंगे। उसी समय इस पिटारी को भी खोलना। इसमें हार आदिक कई बहुमूल्य आभूषण हैं। ज्योंहीं तुम उन वस्त्र
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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