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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 179 जंगल का रास्ता लिया हरे भरे वृक्ष भी इस दावानल की प्रबलता के कारण इस प्रकार भस्म होने लगे, मानो सूखा हुआ तृण भस्म हो रहा हो। नल भी यह दावानल देखकर कर्त्तव्य विमूढ़ बन गये। ठीक इसी समय उस दावानल के अन्दर से नल को किसी मनुष्य की सी आवाज आती हुई सुनायी दी। उन्होंने कान लगाकर सुना तो उन्हें मालूम हुआ, कोई अपनी रक्षा के लिए उन से पुकार पुकार कर प्रार्थना कर रहा है। वह कह रहा था—“हे इक्ष्वाकुकुल तिलक राजा नल। हे क्षत्रियोत्तम! मेरी रक्षा कीजिए। आप यद्यपि निष्कारण उपकारी है, तथापि यदि आप मेरी प्राण रक्षा करेंगे तो मैं भी उसके बदले आप का कुछ उपकार कर दूंगा।" यह सुनकर नल उस दावानल की ओर आगे बढ़े। समीप पहुँचने पर उन्होंने देखा कि वनलताओं के झुण्ड में एक भीषण सर्प पड़ा हुआ है और वही उनका नाम ले लेकर अपनी रक्षा के लिए उन्हें पुकार रहा है। नल को एकाएक उस सर्प के पास जाने का साहस न हआ। उन्होंने दूर ही से उसे पूछा- “हे भुजंग! तुझे मेरा और मेरे वंश का नाम कैसे मालूम हुआ? क्या तू वास्तव में सर्प है ? सर्प तो मनुष्य की बोली नहीं बोलते! ... सर्प ने उत्तर दिया- “हे महापुरुष! पूर्व जन्म में मैं मनुष्य था, किन्तु अपने कर्मों के कारण इस जन्म में मैं सर्प हो गया हूं। किसी सुकृत के कारण मैं इस जन्म में भी मानुषी भाषा बोल सकता हूं। हे यशोनिधान! मुझे अवधिज्ञान है, इसलिए मुझे आपका और आपके वंशादिक का नाम मालूम है। आप शीघ्र ही मेरा रक्षा कीजिए वर्ना मैं इसी में जलकर खाक हो • जाऊंगा।" ... सर्प की यह दीनतापूर्ण बातें सुनकर नल को उस पर दया आ गयी। उन्होंने दूर से ही अपने उत्तरीय वस्त्र का एक छोर उसके पास फेंक दिया, सर्प जब उससे लिपट गया तब उन्होंने उस वस्त्र का दूसरा छोर पकड़कर उसे अपनी और खींच लिया। इसके बाद वे उसे उठाकर निरापद स्थान को ले जाने लगे, परन्तु उस स्थान तक पहुँचने के पहले ही उसने राजा नल के हाथ में बेतरह डस लिया। इससे नल ने तुरन्त उसे दूर फेंक दिया और कहा"वाह! तुम ने मेरे ऊपर बड़ा ही उपकार किया! लोग सच ही कहते हैं, कि
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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