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________________ 178 नल-दमयन्ती - चरित्र उन्हें कह सुनाया। सुनने के बाद माता पुष्पदन्ती ने उसे बहुत सान्त्वना दी। उसने कहा- "हे आयुष्मती ! यह बड़े आश्चर्य की बात है कि इतने संकट आने पर भी तुम्हारा जीवन बच गया है और तुम सकुशल हमारे पास पहुंच गयी हो। इससे प्रतीत होता है कि तुम्हारा सौभाग्य सूर्य अभी अस्त नहीं हुआ है। अब तुम यहां पर आनन्द से रहो, मेरा विश्वास है कि कभी न कभी तुम्हारे पतिदेव तुम्हें अवश्य मिलेंगे। हम लोग अब उनकी खोज करने में भी कोई बात की कसर न रक्खेंगे।" पुरोहित हरिमित्र का कार्य बहुत ही सन्तोषदायक था । यदि उसने तनमन से चेष्टा न की होती, तो दमयन्ती का पता कदानि न चलता। राजा भीमरथ ने इन सब बातों पर विचार कर उसे पाँच सौ गांव इनाम दे दिये साथ ही उन्होंने कहा—“हरिमित्र ! यदि इसी तरह चेष्टा कर तुम नल का पता लगा लोगे, तो मैं तुम्हें अपना आधा राज्य दे दूंगा ।" इसके बाद उन्होंने अपनी पुत्री के आगमन के उपलक्ष में एक अट्टाई महोत्सव किया, जो सात दिन तक जारी रहा। इन दिनों में उन्होंने देव पूजा और गुरु पूजा विशेष रूप से की। समय समय पर राजा भीमरथ भी दमयन्ती को बड़े प्रेम से अपने पास बुलाकर उसे सान्त्वना दिया करते थे । एक दिन उन्होंने कहा - " हे पुत्री ! मैं एक ऐसी युक्ति सोच रहा हूं, जिससे नलकुमार जहां होंगे वहां से अपने आप यहां चले आयेगे। मेरी यह धारण है, कि अब तुम्हें अधिक समय तक यह दुःखमय जीवन न बिताना होगा । " पिता की इन सान्त्वनाओं से दमयन्ती को खूब शान्ति मिलती थी और वह अपने दिन बड़े ही आनन्द में बिताती थी । इस तरह कोशला नगरी छोड़ने के कई वर्ष बाद दमयन्ती तो किसी तरह ठिकाने लग गयी, किन्तु नल को शुभदिन देखने का समय अभी न आया था। वे दमयन्ती को सोती हुई छोड़कर वर्षो तक जंगल में भटकते रहे। एक बार उन्हें एक स्थान से काजल समान काला धुआँ निकलता दिखायी दिया। वह इस प्रकार ऊंचे चढ़ रहा था, मानो सूर्य, चन्द्र और ताराओं को श्याम बनाने के लिए वहां जा रहा हो । शीघ्र ही उस स्थान में आग की भयंकर लपटें दिखायी देने लगी। पशुओं में भगदड़ मच गयी । पक्षियों ने उड़ उड़कर दूसरे
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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