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________________ 172+ नल-दमयन्ती-चरित्र वसन्त का यह समाचार सुनकर और उसे सुखी जानकर दमयन्ती को अत्यन्त आनन्द हुआ। उन्होंने उस चोर से कहा-“हे वत्स! तुमने पूर्वजन्म में दुष्कर्म किये थे। उन्हीं का फल तुम इस जन्म में भोग रहे हो। अब तुम्हें दीक्षा लेकर उन दुष्कर्मो को क्षय कर देना चाहिए। चोर ने कहा-“माताजी! मैं आप की आज्ञा शिरोधार्य करने को तैयार इसी समय वहां पर कहीं से दो साधु आ पहुंचे। दमयन्ती ने उन्हें दोष रहित भोजन कराने के बाद कहा- "हे भगवान् ! यदि यह पुरुष योग्य हो, तो इसे दीक्षा देने की कृपा कीजिए।" साधुओं ने कहा- "हां, यह योग्य है। इसे दीक्षा देने में कोई आपत्ति नहीं है।" यह कहते हुए मुनिराज पिङ्गल को उसी समय देव मन्दिर में ले गये और वहां पर उन्होंने उसे यथाविधि दीक्षा दे दी। उधर कई दिनों के बाद दमयन्ती के पिता भीमरथ ने सुना कि छूत क्रीड़ा में नल का सारा राज्य कुबेर ने जीत लिया है और राज्य जीतने के बाद उसने नल को अपने देश से निकल जाने की आज्ञा दे दी है। उन्होंने यह भी सुना कि दमयन्ती को साथ लेकर नल जंगल में चले गये हैं, किन्तु इसके बाद उन दोनों का क्या हुआ, यह आज तक किसी को मालूम नहीं हो सका। ... महल में जाकर राजा ने यह समाचार अपनी रानी पुष्पदन्ती को सुनाया। पुष्पदन्ती अपनी पुत्री और दामाद की चिन्ता से अधीर और व्याकुल होकर रुदन करने लगी। राजा भीमरथ को भी कम दुःख न हुआ था। किन्तु वे जानते थे कि विपत्तिकाल में जो मनुष्य धैर्य से काम लेता है, वही अन्त में सुखी होता है। उन्होंने रानी को भी समझा बुझाकर शान्त किया। इसके बाद रानी ने उनसे अनुरोध किया कि किसी चतुर दूत को भेजकर चारों ओर उनकी खोज करानी चाहिए। राजा भीमरथ ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। दूसरे ही दिन उन्होंने इस कार्य के लिए हरिमित्र नामक एक पुरोहित को चुन लिया और उसे सब मामला समझा कर नल दमयन्ती की खोज करने के लिए रवाना किया। वह सर्वत्र उनकी खोज करता हुआ क्रमश: अचलपुर में पहुँचा और वहीं के राजा ऋतुपर्ण से भेंट की। जिस समय उन दोनों में
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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