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श्री नेमिनाथ - चरित : 9
चन्द्रवती की यह बातें सुनकर धनवती कुछ विचार में पड़ गयी । संयोगवश कमलिनी भी उस समय वहीं उपस्थित थी । उसने कहा - " हे सखी ! यह दूत तो अभी यहीं है। यदि कुछ सन्देह हो तो उससे पूछताछ की जा सकती है। कहिए तो मैं उसे इसी वक्त बुला लाऊँ । हाथ कंगन को आरसी क्या ?"
धनवती ने प्रकट रूप में तो इसके लिए सम्मति न दी, परन्तु कमलिनी उसका मनोभाव तुरन्त समझ गयी और उसी क्षण उस दूत को धनवती के पास लेकर आ गयी। उसके मुख से यथार्थ समाचार सुनकर धनवती को असीम आनन्द हुआ। उसने राजकुमार के नाम एक पत्र लिखकर, उसे गुप्त रूप से राजकुमार के पास पहुँचा देने का उस दूत को आदेश दिया। साथ ही यह कार्य सुचारू रूप से सम्पादित करने पर, उसने उस दूत को पुरस्कार देने का भी प्रलोभन दिया। दूत ने उसी दिन अचलपुर के लिए प्रस्थान किया । अचलपुर पहुँचते ही वह सर्वप्रथम राज-सभा में उपस्थित
हुआ। उसे तुरन्त वापस आया देखकर राजा विक्रमधन आश्चर्य में पड़ गये । उन्होंने कुछ चिन्तित भाव से पूछा - "कहिए, आपके महाराज प्रसन्न तो हैं ? आप अपने नगर तक पहुँचे या नहीं ? यदि पहुँचे तो इतनी जल्दी वापस क्यों लौट आये ? "जो कुछ समाचार हो, जल्दी दो मुझे बड़ी चिन्ता हो रही है । "
दूत ने हाथ जोड़कर कहा - "हे राजन् ! चिन्ता की कोई बात नहीं । मैं · अपने नगर से ही वापस आ रहा हूँ । महाराज ने एक खास काम के लिए मुझे आपकी सेवा में भेजा है। यह तो शायद आप जानते ही होंगे, कि हमारे महाराज के दो राजकुमारियाँ हैं, जिनमें से बड़ी का नाम धनवती है। महाराज उसका ब्याह आपके राजकुमार धन से करना चाहते हैं । उसी की मँगनी करने के लिए उन्होंने उस पत्र के साथ मुझे आपके पास भेजा है। आपके राजकुमार जैसे रूपवान हैं, हमारी राजकुमारी भी वैसी ही रूपवती है । विद्या- कला और सद्गुणों में भी दोनों किसी से कम नहीं हैं। ऐसी अवस्था में मैं जोर के साथ आपसे अनुरोध करता हूँ कि इस सम्बन्ध के लिए आप अवश्य अपनी अनुमति प्रदान करें । मेरा यह भी विश्वास है कि इस सम्बन्ध से आप और हमारे महाराज का प्रेम सम्बन्ध भी अधिक प्रगाढ़ और सुदृढ़ हो जायगा । "
दूत की यह प्रार्थना सुनकर राजा विक्रमधन पहले तो कुछ विचार में पड़