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श्री नेमिनाथ-चरित * 167 की ढेरी में पड़ा रहने पर भी कुन्दन अपनी स्वाभाविक दमक नहीं छोड़ता, उसी प्रकार दिन हीन और मलीन होने पर भी दमयन्ती की स्वाभाविक सुन्दरता अभी नष्ट न हुई थी। उसे देखकर सभी दासियें आपस में काना फूसी करने लगी। वे कहने लगी-“यह अवश्य कोई बडे घराने की स्त्री है, क्योंकि ऐसा रूप तो देवी और विद्याधारियों में भी नहीं पाया जाता। किसी आपत्ति विपत्ति में पड़कर इसकी यह अवस्था हो गयी है। इसलिए यह दुःखितावस्था में भूमि पर लेट रही है। लेकिन पंक लग जाने पर भी कमलिनी तो सदा कमलिनी ही रहती है।"
दमयन्ती चिन्तामग्न थी, साथ ही उसे कुछ निद्रा भी आ गयी थी, इसलिए दासियों की इन बातों की ओर उसका ध्यान भी आकर्षित न हुआ। वे सब जल भरकर राजमन्दिर को वापस चली गयी। वहां उन्होंने रानी से उसकी चर्चा की। इसलिए रानी ने कहा-“अच्छा, तुम जाओ और उसे मेरे पास ले आओं। मैं उसे अपनी पुत्री चन्द्रवती की बहिन बनाकर अपने पास रख लूंगी।"
रानी की यह बात सुनकर उसकी कई दासियाँ दमयन्ती के पास गयी और कहने लगी- "हे सुभगे! इस नगर की रानी चन्द्रयशा ने तुम्हें आदर पूर्वक अपने पास बुलाया है। वे तुम्हें अपनी पुत्री के समान रक्खेंगी और यहां पर पड़े रहने से तो तुम्हारे शरीर में भूत प्रेत प्रवेश कर तुम्हें सतायेंगे। इसलिए हे भद्रे! तुम हमारे साथ चलो और इस मलीन वेश को त्याग कर राजकन्या की भांति ऐश्वर्य भोग करो।" ..
दमयन्ती ऐश्वर्य के प्रलोभन से तो लुब्ध न हुई, किन्तु रानी ने उसे पुत्री बनाकर आश्रयं देने को कहा था, इसलिए वह उसी समय दासियों के साथ चन्द्रयशा के पास चली गयी।
चन्द्रयशा दमयन्ती की सगी मौसी थी, परन्तु दमयन्ती को इस बात का कुछ भी पता न था। दूसरी ओर चन्द्रयशा को यह बात मालूम थी, कि उसकी बहिन के दमयन्ती नामक एक लड़की है, उसने बाल्यावस्था में उसे देखा भी था, किन्तु इस समय न तो वह पहचानती ही थी, न ही उसे बात का पता था कि यह दमयन्ती ही है। .