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________________ श्री नेमिनाथ - चरित 161 कहा—“हे भगवान! आपने दीक्षा किस प्रकार ली थी ?" केवली भगवान ने कहा-' - " मेरी दीक्षा की भी एक विचित्र कहानी है, किन्तु तुम सब लोगों का कौतूहल निवारण करने के लिए मैं उसे सहर्ष वर्णन करता हूं। सुनो, मेरा जन्म कोशला नगरी में हुआ था । मैं राजा नल के लघुबन्धु कुबेर राजा का पुत्र हूं। संगानगरी के केसरी राजा की बंधुमती नामक कन्या से मेरा विवाह हुआ था। विवाह के बाद मैं उस नवोढा को साथ लेकर जिस समय अपने नगर की ओर आ रहा था, उसी समय मार्ग में मुझे यह गुरुदेव दिखायी दिये। इनके साथ शिष्यों का भी एक बहुत बड़ा दल था। मैंने इन्हें भक्ति पूर्वक वन्दन कर इनका धर्मोपदेश सुना । धर्मोपदेश सुनने के बाद मैंने मुनिराज से अपना आयुष्य पूछा। उन्होंने बतलाया कि तुम्हारा अयुष्य अब केवल पाँच ही दिन का है। मृत्यु के समीप जानकर मेरा हृदय भय से कांप उठा । मुझे भयभीत देखकर गुरुदेव ने कहा" हे वत्स ! भयभीत होने से कोई लाभ नहीं । ऐसे समय में तो धैर्य धारण करना चाहिए। मेरी बात मानों तो तुम दीक्षा ले लो । यदि मनुष्य एक दिन भी दीक्षा की आराधना करता है, तो वह स्वर्ग और मोक्ष सुख का अधिकारी हो जाता है।' "" गुरुदेव के यह वचन सुनकर मैंने तुरन्त उनके निकट दीक्षा ले ली। उन्हीं के उपदेश से मैं यहां चला आया था। यहां पर शुक्ल ध्यान के कारण मेरे घातिकर्म क्षयं हो गये और मुझे मोक्ष सुख देने वाला केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ।” इतना कह केवली भगवान शान्त हो गये। योग निरोध तो वे करते ही थे। इसलिए शीघ्र ही भवोपग्राही चार कर्मों का क्षय कर वे परमपद के अधिकारी हुए । देवतागण उनके शरीर को पवित्र क्षेत्र में ले गये और वहां पर उन्होंने उसका अग्नि संस्कार किया । इसके बाद उस कुलपति ने श्री यशोभद्रसूरि के निकट दीक्षा ले ली। दमयन्ती को भी उसी समय दीक्षा लेने की इच्छा हुई, उसने इसके लिए मुनिराज से प्रार्थना भी की, किन्तु उन्होंने यह कहकर उसे दीक्षा देने से इन्कार कर दिया कि अभी तुम्हें नल के साथ भोग भोगने बाकी हैं, इसलिए तुम दीक्षा के योग्य नहीं हो । "
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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