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श्री नेमिनाथ - चरित 153 स्त्री है, इसलिए उसने उसकी बात पर कोई ध्यान न दिया । दमयन्ती ने जब देखा कि वे ऐसे मानने वाले नहीं है और सार्थ को लूटने की तैयारी कर रहे हैं, तब उसने कई बार भीषण हुंकार किये। उसके इस शब्द से सारा जंगल भर गया। डाकुओं को तो ऐसा मालूम हुआ मानों भयंकर वज्रपात के कारण उनके कान बहरे हो गये हैं । जिस प्रकार धनुष का शब्द सुनकर कौवें भगते हैं, उसी प्रकार दमयन्ती का वह शब्द सुनकर डाकू पलायन कर गये। उनसे सार्थ का कुछ भी अनिष्ट न हुआ।
दमयन्ती का यह अद्भुत चमत्कार देखकर सार्थ के आदमी उसके बड़े भक्त बन गये। वे कहने लगे- "यह अवश्य कोई देवी है, जो हमारी सुकृत से आकर्षित हो यहां आयी है। यदि आज इसने हमारी रक्षा न की होती, तो हम लोग बेमौत मारे जाते, हमारी सारी सम्पत्ति लुट जाती ।
डाकुओं के भाग जाने पर सार्थवाह दमयन्ती के पास गया और माता की भांति श्रद्धा पूर्वक उसे प्रणाम कर कहने लगा- “हे माता ! आप कौन हैं और इस मलीन वेश में यहां क्यों विचरण कर रही हैं ? "
दमयन्ती को आज बहुत दिनों के बाद मनुष्य की सूरत दिखायी दी थी। कोशला नगरी छोड़ने के बाद आज पहले पहल ही यह ऐसा आदमी मिला था, जिसने उससे सुख दु:ख पूछा था । इसलिए उसका प्रश्र सुनकर दमयन्ती की आंखों में आंसू भर आये। उसने सार्थपति को अपना बन्धु मानकर नल की द्यूतक्रीड़ा से लेकर अब तक का सारा हाल उसे कह सुनाया ।
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दमयन्ती का प्रकृत परिचय पाकर सार्थपति को बड़ा ही आश्चर्य हुआ । उसने हाथ जोड़कर कहा - "हे महासती ! आप राजा नल की पत्नी है, अत: हमारे लिये परम पूजनीय हैं। आपके दर्शन पाकर हम लोग आज धन्य हो गये हैं । आपने डाकुओं से भी हमारी रक्षा की है। इसलिए हम और भी आप के ऋणी हैं। आप मेरे साथ चलकर मेरे स्थान को पावन कीजिए। हम लोग आपका जितना सत्कार करें, वह थोड़ा ही है । "
इतना कह वह सार्थपति बड़े आदर के साथ दमयन्ती को अपने तम्बू में ले गया। वहां पर उसने भोजनादिक द्वारा उसका सत्कार किया। शारीरिक और मानसिक विश्राम मिलने के कारण दमयन्ती की थकावट भी दूर हो गयी और