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152 * नल-दमयन्ती-चरित्र
इस प्रकार अपना कर्तव्य निर्धारित कर, दमयन्ती वटवृक्ष वाले मार्ग द्वारा अपने मायके के लिए चल पड़ी। परन्तु यह मार्ग नाना प्रकार के हिंसक प्राणियों से पूर्ण हो रहा था। ज्योंही दमयन्ती आगे बढ़ी, त्योंही मुख फैलाये हुए व्याघ्र उसे सामने मिले। वे दमयन्ती पर आक्रमण करने के लिए झपटे, परन्तु उन्हें वह अग्निज्वाला के समान दिखायी दी, इसलिए उन्हें उसके समीप आने का साहस न हुआ। ____ यहां से आगे बढ़ने पर कहीं भयंकर सों के बिल में दमयन्ती का पैर लग गया। इससे बड़े बड़े विषधर साँप उसमें से निकल कर फुफकार मारते हुए दमयन्ती की ओर लपके, परन्तु उसके सतीत्व के प्रभाव से वे भी उसके पास तक न पहुँच सके। इसी तरह मदोन्मत्त हाथियों से भी उसे काम पड़ा, किन्तु वे भी उसका कुछ अनिष्ट न कर सके। बात यह है कि जो स्त्रियाँ सती होती हैं। किसी भी उपद्रव के कारण उनका बाल बांका नहीं होता।
दमयन्ती का वेश मार्ग की कठिनाई, थकावट और धूल धक्कड़ के कारण बहुत ही मलीन हो गया था। वह देखने में अब एक भिल्लनी जैसी प्रतीत होती थी। उसके केश खुले हुए और वस्त्र गीला हो रहा था। वह दावानल के भय से हस्तिनी की भांति झपटती हुई अपने मायके की ओर चली जा रही थी। इतने ही में उसे एक बहुत बड़ा सार्थ दिखायी दिया, जो पड़ाव डाले वहीं पड़ा हुआ था। दमयन्ती ने सोचा कि यदि पुण्य योग से जंगल में कोई सार्थ मिल जाता है, तो उससे व्याकुल मुसाफिर को वैसा ही लाभ होता है, जैसा डूबते हए को समुद्र में नौका मिल जाने पर होता है। अब मैं इसके साथ निर्विघ्न रूप से एकाध दिन रह सकूँगी।" ___यह सोचकर दमयन्ती उसी स्थान में बैठ गयी। दुर्भाग्यवश इसी समय डाकुओं का एक बहुत बड़ा दल वहां आ पहुँचा और उस सार्थ को घेर लिया। परन्तु दमयन्ती जैसी महासती के साथ रहने पर वे भला उसका क्या बिगाड़ सकते थे! दमयन्ती ने उन डाकुओं के सरदार से कहा-“यदि तुम अपना कल्याण चाहते हो, तो इसी समय यहां से चले जाओ। मैंने प्राणपण से इस सार्थ की रक्षा करना स्थिर किया है।"
परन्तु दमयन्ती का मलीन वेश देखकर उसने समझा कि यह कोई पगली