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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 143 देखकर नगर की स्त्रियाँ रो पड़ी। वे कहने लगी—“हा दैव! तेरी यह कैसी गति है ? कल तक तो राजा रानी थी, जिसने महल के बाहर पैर भी न रक्खा था, आज वहीं केवल एक वस्त्र से पति के साथ जंगल की ओर जा रही है।" इस प्रकार जनता का करुण क्रन्दन सुनते हुए, नल राजा कोशला नगरी के एक बड़े रास्ते पर जा पहुँचे। वहां पर उन्हें करीब पांच सौ हाथ ऊँचा और बहुत भारी एक स्तम्भ दिखायी दिया। उसे देखते ही नल अपना सारा दुःख भूल गये। कौतूहल वश उसके पास जाकर उन्होंने बात की बात में पहले उसे उखाड़ डाला और बाद में फिर उसी स्थान में गाड़ दिया। उन्हें इस प्रकार अपना बल आजमाने का शौक था। इसलिए उन्हें इस कार्य में जरा भी कष्ट या कठिनाई प्रतीत न हुई। .. नल का यह बल देखकर लोग अश्चर्य में पड़ गये। वे कहने लगे“अहो! धन्य है नलराज को, जो इतने पराक्रमी हैं। हा दैव! तूं ऐसे बलवान को भी चक्कर में डाल देता है! तेरी गति बहुत ही विचित्र है!" . इसी समय नल का यह पराक्रम देखकर, लोगों को एक पुरानी घटना याद आ गयी। जिस समय नल और कुबेर बालक थे और अपना अधिकांश समय खेल कूद में व्यतीत करते थे, उस समय एक ज्ञानी मुनि का आगमन हुआ था। उन्होंने नल को देखकर कहा था कि-"इस नल ने पूर्वजन्म में साधु को क्षीरदान दिया था, इसलिए इस जन्म में यह अर्धभरत का स्वामी होगा इसीकी एक पहचान यह भी होगी, कि नगर में जो पांच सौ हाथ ऊंचा स्तम्भ है, उसे यह अनायास उखाड़ कर पुन: गाड़ सकेगा।" ___मुनि का वचन आज सत्य प्रमाणित हुआ। लोग कहने लगे—नल ही अर्धभरत के वास्तविक स्वामी होंगे। आज कुबेर की कपट लीला के कारण उन्हें नगर छोड़ना पड़ रहा है, किन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि वे किसी दिन फिर अपना सिंहासन अपने हाथ में ले लेंगे। धन्य है राजा नल को! धन्य है सती दमयन्ती को ! ईश्वर करे इनका पुण्य प्रताप दिन प्रतिदिन बढ़ता रहे। इन दोनों की जय हो!" - इस प्रकार प्रजा की ओर से अपनी प्रशंसा देखते सुनते हुए राजा नल नगर के बाहर निकले। दमयन्ती का हृदय इस दुःख से मानो विदीर्ण हुआ जा
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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