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142 * नल-दमयन्ती-चरित्र पुर में नहीं रख सकते। वैसे भी बड़े भाई की लोकरीति को बालक तक जानते हैं, इसलिए आप इस विचार को अपने हृदय से निकाल दीजिए। यदि आप हमारी बातों पर ध्यान न देंगे, और इस मामले में बल से काम लेंगे, तो दमयन्ती आप को भस्म कर देगी, क्योंकि इसके लिए यह असम्भव नहीं है। बल्कि हमारी सलाह तो यह है कि आप ऐसा प्रबन्ध कर दें, जिससे नल के साथ जाने में उसे सुविधा हो। नल को आप ग्राम या नगर भले ही न दें किन्तु कम से कम मार्गव्यय और एक रथ तो दे ही दें। इससे दमयन्ती को.भी कष्ट न होगा और वे आसानी से आप की सीमा पार कर सकेंगे। आपको तो खुद सोचकर अपनी ओर से यह सब कर देना चाहिए था, जिससे हमें कहने की जरूरत ही न पड़ती।" .
मन्त्रियों की यह फटकार सुनकर कुबेर कुछ लज्जित हुआ और उसने दमयन्ती का रास्ता छोड़ दिया। मन्त्रियों के कथनानुसार उसने खाने पीने के कुछ सामान, एक सारथी और एक रथं भी नल को दे देने की आज्ञा दी। किन्तु नल ने कहा-“जब मैंने द्यूत में अपनी सारी सम्पत्ति खो दी, तब इस रथ का ही मुझे क्या प्रयोजन है ? मुझे यह कुछ न चाहिए।" ___ मन्त्रियों ने कहा-हे स्वामिन् ! हम भी आप के साथ चलते, किन्तु आपने कुबेर को राज्य दे दिया है, वह राजा हो.गया है, इसलिए उसे छोड़कर जाना अब हम उचित नहीं समझते। अब तो दमयन्ती ही आपको, मन्त्री मित्र
और सेवक का काम देगी। किन्तु हे नाथ! दमयन्ती परम सती है, साथ ही शिरीप पुष्प के समान सुकुमार है। ऐसी अवस्था में आप उसे पैदल कैसे से ले जायेंगे? सूर्य के प्रखर ताप से तवे की तरह तपते हुए मार्ग को अपने कोमल पैरों से दमयन्ती किस प्रकार पार कर सकेंगी? इसलिए आप रानी सहित इस रथ पर बैठने की दया कीजिए। ईश्वर आप का कल्याण करेगा।"
मन्त्रियों के कई बार कहने पर भी पहले तो नल ने रथ पर बैठने से इन्कार किया, किन्तु अन्त में उनके अनुरोध के सामने उन्हें झुकना ही पड़ा। राजा नल उसी समय दमयन्ती के साथ रथ पर बैठकर वहां से चल पड़े। दमयन्ती ने केवल एक ही वस्त्र पहन रखा था। अत: उसे देखकर ऐसा मालूम होता था, मानो वह कहीं स्नान करने जा रही है। उसका यह वेश