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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 141 पड़ा। धीरे धीरे वे अपना सारा राज्य हार गये। किन्तु इतने पर भी उन्होंने उठने का नाम न लिया। अब उनके पास और कोई सम्पत्ति न थी। सिर्फ अन्त: पुर बचा हुआ था। एक दांव में उसे और दमयन्ती को भी लगा दिया। भाग्य तो उनके प्रतिकूल था ही, वे उसे भी हार गये। अब ऐसी कौन सी वस्तु बची हुई थी, जिसे नल दांव पर रखते ? उन्होंने एक बार चारों ओर देखा, दूर दूर तक नजर दौड़ाती, किन्तु कोई वस्तु दिखायी न दी। इतने में उनकी दृष्टि अपने शरीर पर पड़ी। भुजाओं में बाजूबन्द, कानों में कुण्डल, गले में मुक्तामाला आदि आभूषण अब भी मौजूद थे। उन्होंने एक एक करके उन्हें भी दांव पर रख दिया। उनकी भी वही गति हुई, जो सब सम्पत्ति की हुई थी। अब उनके पास कोई भी वस्तु बची न थी। सभी कुछ समाप्त हो गया था, इसलिए जुआं भी समाप्त हो गया। नल वहां से उठे, किन्तु दमयन्ती के कथनानुसार पथ के भिखारी बन कर ही उठे! नल को जाते देख, कुबेर ने विकट हँसी हँस कर कहा-"नल! अब तुम यहां मत रहना। अपने राज्य में मैं तुम्हें कदापि न रहने दूंगा। आज यह नगरी छोड़ दो और जितनी जल्दी हो सके, मेरी सीमा के बाहर निकल जाओ! तुम को पिता ने राज्य दिया था, किन्तु मुझे तो इन पासों ने दिया है!" नल ने कहा-"भाई, अभिमान मत करो! लक्ष्मी तो समर्थ पुरुषों की दासी है!". . इतना कहकर नल, केवल एक उत्तरीय वस्त्र पहन कर वहां से चल पड़े। दमयन्ती ने भी उनका अनुसरण किया। इस पर कुबेर ने उसका रास्ता रोक कर कहा-“हे सुन्दरी! तुम कहाँ जाती हो? तुम्हें तो नल जुएं में हार चुके हैं। तुम अब मेरे साथ चलो और मेरे अन्त: पुर को पावन करो!" दमयन्ती ने तो कुबेर के इन वचनों का कोई उत्तर न दिया, किन्तु नल के वयोवृद्ध मन्त्रियों से अब बोले बिना न रहा गया। उन्होंने कहा- "हे कुबेर! अब तक हमारे लिए जैसे नल राजा थे, वैसे ही अब आप हैं। हम आपके सेवक हैं, किन्तु आपके इस अन्यायपूर्ण कार्य का विरोध किये बिना हम कदापि नहीं रह सकते। दमयन्ती महासती है। इसे साधारण स्त्री मत समझना। यह परपुरुष की छाया भी अपने शरीर पर न पड़ने देगी। इसे तुम अपने अन्त:
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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