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________________ 138 * नल-दमयन्ती-चरित्र यह बात नल को मालूम न हो सकी, इसलिए उन्होंने उसकी खोज करनी शुरू की। उन्होंने सोचा कि उसे इस प्रकार जीता छोड़ देने से वह फिर किसी दिन बगावत का झंडा खड़ा करेगा, इसलिए या तो उसे मार डालना चहिए या उससे अपनी वश्यता स्वीकार करा लेनी चाहिए। यही सोचकर उन्होंने उसका पीछा न छोड़ा। ___ कई दिनों के बाद नल ने कदम्ब को पाया, किन्तु उनके लिये उसको पाने की अपेक्षा न पाना ही अच्छा था। कदम्ब उस समय प्रतिमाधारी यति के वेश में था। नल उसका यह वेश देखकर चक्कर में पड़ गये। पहले तो उन्होंने समझा कि उसने प्राणभय से ही यह वेश धारण कर लिया है, इसलिए उन्होंने उसे भला बुरा कहकर युद्ध के लिये ललकारा, किन्तु उनकी बातों का ज़ब उस पर कोई प्रभाव न पड़ा, तब नल को विश्वास हो गया, कि उसने वास्तव में दीक्षा लेकर तप आरम्भ कर दिया है। अपने इस कार्यद्वारा उसने उलटे नल को जीत लिया। नल ने उसके सामने शिर झुकाकर कहा-“कदम्ब! मैंने अज्ञानतावश तुम्हें भला बुरा कहा हैं इसके लिए मेरा यह अपराध क्षमा करो। ____ इधर कदम्ब भी वास्तव में विरक्त हो गया था। उसके निकट अब राजा और प्रजा सभी समान थे। किसी के अपराध से रुष्ट होने या किसी की खुशामद से सन्तुष्ट होने का अब उसे कोई कारण न था, इसलिए उसने नल की इन बातों का कोई उत्तर न दिया। उसकी यह निस्पृहता देखकर नलराज की श्रद्धा सौगुनी बढ़ गयी। वे नाना प्रकार से कदम्ब की स्तुति कर, उसके सत्त्व से शिर धुनाते हुए तक्षशिला को लौट आये। वहां पर उन्होंने उसके पुत्र जयशक्ति को उसके सिंहासन पर बैठाया। उसने नल राजा की अधीनता स्वीकार कर ली। तदनन्तर नल राजा विजय का डंका बजाते हुए अपनी नगरी को लौट आये। कोशला नगरी में वापस आने पर उनके आदेश से अर्धभरत के समस्त राजा उनकी सेवा में उपस्थित हुए और उन्होंने नल को अर्धभरत का एकछत्र स्वामी मानकर उनका राज्याभिषेक किया। नल ने भी इस समय बड़े समारोह के साथ उत्सव मनाया और अतिथि रूप राजाओं को आदर सत्कार द्वारा सम्मानित किया। यह उत्सव पूर्ण होने पर सभी राजा महाराजा अपने अपने
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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