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________________ श्री नेमिनाथ-चरित * 137 के आक्रमण का समाचार मालूम होते ही कदम्ब भी अपनी सेना के साथ बाहर निकल आया। बस, फिर क्या था, दोनों दलों में घोर युद्ध आरम्भ हो गया। पैदल से पैदल, घोड़े से घोड़े और हाथी से हाथी, भिड़ गये। चारों और खून की प्यासी चमाचम तलवारें चमकने लगी। बाण चलानेवालों ने आकाश में बाणों के मण्डप बना दिये। शस्त्र प्रहारों से आहत हो, दोनों दलों के योद्धा भूमि पर गिर-गिर कर वीरगति को प्राप्त होने लगे। देखते ही देखते वहां पर खून की नदी बहने लगी। . दोनों ओर के सैनिक और हाथी घोड़ों का नाश होते देखकर नल ने कदम्ब से कहा-"व्यर्थ ही इन निर्दोष सैनिक और मूक पशुओं का नाश क्यों होना चाहिए? हम दोनों परस्पर युद्ध कर अपने जय पराजय का निर्णय क्यों न कर लें? कदम्ब अभिमानी तो था ही, उसने तुरन्त नल की बात मान ली। उनका आदेश मिलते ही दोनों ओर सैनिकों ने युद्ध बन्द कर दिया। अब नल और कदम्ब में विविध आयुधों द्वारा भांति भांति का युद्ध होने लगा। कभी वे तलवार से लड़ते, कभी भाले और कभी कटारी से। एक बार दोनों में भीषण मल्लयुद्ध भी हुआ। कदम्ब ने जिस प्रकार का या जिस जिस शस्त्र द्वारा युद्ध करने की इच्छा प्रकट की अथवा जिस युद्ध के लिए नल को चुनौती दी, उसी युद्ध में नल ने उसे बुरी तरह पराजित किया। किसी युद्ध में भी कदम्ब की विजय न हुई। . अब कदम्ब की आंखे खुली। अब उसे मालूम हुआ कि नल से लोहा लेने में, नल को तुच्छ समझने में उसने भयंकर भूल की थी। किन्तु अब क्या . हो सकता था ? विजयलक्ष्मी ने जयमाल नल के गले में डाल दी थी। कदम्ब सभी तरह से हारा हुआ था। वह चिन्ता में पड़ गया। प्राय: ऐसे ही समय मनुष्य के हृदय में सद्बुद्धि उत्पन्न होती है। उसने सोचा कि राज्य तो हाथ से जाता ही है, अब कीड़ी, मच्छर या कुत्ते की मौत करने की अपेक्षा मैं कोई ऐसा कार्य क्यों न कर लूँ, जिससे मेरा आत्म कल्याण हो जाय? सौभाग्यवश उसे आत्मकल्याण का एक उपाय भी सुझाई दिया। उसने उसी समय समरभूमि से भाग कर किसी मुनिराज के पास जाकर दीक्षा ले ली।
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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