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________________ 132 नल-दमयन्ती - चरित्र इतना कह दमयन्ती ने कलश से जल लेकर कृष्णराज पर उसे तीन बार छिड़क दिया। यह छींटे शरीर पर पड़ते ही कृष्णराज बुझे हुए अंगारे की भांति निस्तेज हो गया। साथ ही शासन देवी के प्रभाव से उसके हाथ की तलवार इस प्रकार जमीन पर गिर पड़ी, जिस प्रकार वृक्ष से पका हुआ पत्र गिर पड़ता है। इससे कृष्णराज श्रीहीन हो गया और अपने मन में कहने लगा कि नल कोई साधारण मनुष्य नहीं है, मैंने अज्ञानता के कारण व्यर्थ ही उसे भला बुरा कहा और उसका अपमान किया। मुझे इसके लिए अब क्षमा-प्रार्थना करनी चाहिए । मन में यह सद्भाव उत्पन्न होते की कृष्णराज एक नौकर की भांति नल के पैरों पर गिरकर हाथ जोड़कर कहने लगा- - " हे स्वामिन्! मैंने अविचार पूर्वक जो बातें कहीं थी, उनके लिए मुझे घोर पश्चाताप हो रहा है। मेरा यह अपराध क्षमा कीजिए । नल बड़े ही सज्जन और उदार पुरुष थे इसलिए उन्होंने कृष्णराज को शरणागत समझकर तुरन्त उसका अपराध क्षमाकर दिया। अपने जामाता के यह गुण देखकर राजा भीमरथ अत्यन्त प्रसन्न हुए और अपनी पुत्री को पुण्यवती मानकर मन ही मन उसकी प्रशंसा करने लगे। इसके बाद उन्होंने समस्त राजाओं के सामने ही शुभ मुहूर्त में नल दमयन्ती का विवाह कर दिया । कन्या दान के समय उन्होंने नल को अनेक हाथी घोड़े तथा रथादिक देकर सम्मानित किया। स्वयंवर में पधारे हुए जो राजा उनके आग्रह से ठहर गये थे, उनका भी आदर सत्कार करने में उन्होंने किसी प्रकार की कोरकसर न रक्खी। विवाह कार्य सम्पन्न हो जाने के बाद हाथ में कंकण बांधे हुए ह और दमयन्ती ने मंगल गान गाती हुई वृद्धा स्त्रीओं के साथ गृह चैत्य की विधि पूर्वक वन्दना की । इस के बाद राजा भीमरथ तथा निषधराज ने बड़े समारोह के साथ उन दोनों का कंकण मोचन कराया। विवाहोत्सव पूर्ण हो जाने पर भी कई दिन तक निषधराज ने राजा भीमरथ का आतिथ्य ग्रहण किया। इसके बाद उन्होंने भीमरथ से विदा ग्रहण की। भीमरथ उन्हें बहुत दूर तक पहुंचा कर अन्त में अपने नगर को वापस लौट गये । चलते समय दमयन्ती को उसकी माता पुष्पदन्ती ने शिक्षा दी कि हे
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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