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________________ श्री नेमिनाथ-चरित *5 . इस समय धनवती की किशोरावस्था व्यतीत हो रही थी। यौवनावस्था में उसने अभी पदार्पण न किया था, किन्तु उसकी सीमा से अब वह बहुत दूरी पर भी न थी। एक दिन वसन्त ऋतु का सुहावना समय था। उसकी सखियों ने उपवन की सैर करने पर जोर दिया। वह भी इसके लिए राजी हो गयी। शीघ्र ही माता-पिता की आज्ञा ले, वह अपनी सखियों के साथ वसन्त-वाटिका में जा पहुँची। वह वाटिका आम्र, अशोक, पारिजात, चम्पक आदि अनेक वृक्षों से सुशोभित हो रही थी। कहीं राजहंस और सारस पक्षी विचरण कर रहे थे, तो कहीं भ्रमर पंक्तियाँ गुज़ार कर रही थीं। राजकुमारी इन मनोरम दृश्यों को देखती हुई.एक अशोक वृक्ष के पास जा पहुँची। उसने देखा कि उस वृक्ष के नीचे एक चित्रकार बैठा हुआ है। उसके हाथ में किसी रूपवान पुरुष का एक चित्र था और उसे वह बड़े ध्यान से देख रहा था। ___ राजकुमारी धनवती भी उस चित्र को देखने के लिए उत्सुक हो उठी। उसकी यह इच्छा देखकर उसकी कमलिनी नामक एक सखी उस चित्रकार के पास गयी और उससे वह सुन्दर चित्र मांग लायी। राजकुमारी ने बड़े उत्साह से उसे देखा। देखकर वह प्रसन्न हो उठी। वह जिस पुरुष का चित्र था, उसके अंग प्रत्यंग से मानो सौन्दर्य फूट पड़ता था। उसने चित्रकार के पास जाकर पूछा, 'हे भद्र! यह किसका चित्र है? ऐसा रूप तो सुर, असुर या मनुष्य में होना असम्भव है। मैं समझती हूँ कि शायद तुमने अपना कौशल दिखाने के लिए अपनी कल्पना से यह चित्र तैयार किया है। वर्ना जरा-जर्जर विधाता में अब ऐसी शक्ति कहाँ कि वे ऐसे रूपवान पुरुष का निर्माण कर सकें।" ... राजकुमारी के यह वचन सुनकर चित्रकार को हँसी आ गयी। उसने कहा : हे मृगलोचनी! इसे कल्पित चित्र समझने में तुम भूल करती हो। संसार में अभी रूपवान पुरुषों की कमी नहीं। सच बात तो यह है कि जिस पुरुष का यह चित्र है, उसके वास्तविक रूप का शतांश भी इस चित्र में मैं नहीं दिखा सका। यह अचलपुर के राजकुमार धन का चित्र है। मैंने अपनी अल्प बुद्धि के अनुसार इसे अंकित करने की चेष्टा की है, परन्तु मेरा विश्वास है कि साक्षात् धन को देखने के बाद जो इस चित्र को देखेगा, वह अवश्य ही मेरी निन्दा करेगा। तुमने इसे अपनी आँखों से नहीं देखा है, इसीलिए तुम कूप-मण्डूक की भांति विस्मित हो रही हो। राजकुमार का रूप देखकर मानव-स्त्रियाँ तो दूर
SR No.002232
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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